एमपीपीसीबी ने जांच में भी केवल क्लोराइड, सल्फेट, नाइट्रेट, हार्डनेस, पीएच आदि की जांच की, जबकि खंती के लिहाज से जरूरी जांचें नहीं हुईं। यहां पानी में ऑक्सीजन, बीओडी, सीओडी, हैवी मेटल्स की जांच होनी चाहिए। तभी पता चलता कि भूजल में जहरीले तत्व मौजूद हैं या नहीं।
इधर आदमपुर में दूर-दूर तक फैला प्लास्टिक कचरा, जैविक खाद में प्लास्टिक के टुकड़े
आदमपुर छावनी में साइंटिफिक लैंडफिल साइट 2017 में पूरी तरह बन जाने का लिखित दावा नगर निगम ने अक्टूबर 2016 में एनजीटी को किया था। इसके पांच साल बाद मौके पर जो हालात हैं वह चौंकाने वाले हैं। ठोस अपशिष्ट के वैज्ञानिक निष्पादन के नाम पर जो गतिविधियां चल रही हैं, उसके चलते पूरे इलाके का पर्यावरण खतरे में आ गया है। पर्यावरणविद डॉ सुभाष सी पांडे ने एनजीटी को आदमपुर की स्टेटस रिपोर्ट देने के लिए शनिवार को साइट का निरीक्षण किया। सुभाष सी पांडे ने बताया कि, नगरीय ठोस अपशिष्ट नियम 2016 के अनुसार जब किसी भी लैंड फिल साइट का निर्माण किया जाता है , उससे पहले आधा किलोमीटर तक बफर जोन बनाना अनिवार्य है जिसमें सघन पौधरोपण होना चाहिए। लेकिन साइट पर ऐसा कुछ नजर नहीं आया। यहां कचरे के ढेर पर शीट भी नहीं ढंकी गई है जिसके चलते कचरा और पॉलीथिन दूर-दूर तक फैल चुके हैं और जमीन, जल आदि को प्रदूषित कर रहे हैं।
न गर निगम की ओर से तय की गई कम्पनी ग्रीन रिसोर्स सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट की ओर से ठोस गीले कचरे से खाद बनाना बताया जा रहा है। खाद बोरियों रखी भी मिली, लेकिन बारीकी से देखने पर इसमें प्लस्टिक के टुकड़े नजर आए। कम्पनी के अधिकारियों ने बताया कि, गीले और सूखे कचरे को अलग करके खाद बनाई जा रही है। कम्पनी के अधिकारियों ने बताया कि, इस खाद को नर्सरियों और वन विभाग को बेचने की तैयारी है, लेकिन जब पांडे ने जब इस खाद की टेस्टिंग रिपोर्ट मांगी और इसमें हैवी मेटल्स होने या ना होने की पूछताछ की तो अधिकारी जवाब नहीं दे सके।