दम तोड़ रहा कराहा उद्योग
कराहा उद्योग की बदतर हालत देखकर कराहा के कारीगर अपनी नई पीढ़ी को यह हुनर नहीं सिखा रहे हैंपलायन कर रहे मजदूरों के बच्चे
जौनपुर. एक ओर जहां सरकार युवाओं को गांव में रोजगार उपलब्ध कराने व महानगरों में पलायन रोकने और गांवों में छोटे-मंझोले उद्योगों के विकास के लिए अनेकों योजनाएं बना रही हैं लेकिन क्षेत्र में सैकड़ों वर्ष पुराने कराहा उद्योग की हालत देखकर वास्तविकता का अंदाजा लगाया जा सकता है। कराहा उद्योग की बदतर हालत देखकर कराहा के कारीगर अपनी नई पीढ़ी को यह हुनर नहीं सिखा रहे हैं। ऐसे में नई पीढ़ी महानगरों को पलायन करने को मजबूर है।
क्षेत्र के घरवासपुर गांव के लोहार कराहा के कारीगरी के लिए प्रसिद्ध हैं। महराजगंज व घरवासपुर के कारीगरों द्वारा तैयार कराहों की धूम पड़ोसी जनपदों प्रतापगढ़, भदोही तक थी। जनपद के दूर-दराज के लोग यहां टिक कर कराहा बनवाकर साथ ले जाते थे। पचास के दशक में महराजगंज के व्याारी सालिकराग कोलकाता से लोहे की चादर लाकर घरवासपुर के कारीगरों की सहायता से कराहा बनाने का काम शुरू किया। उस दौरान दूर-दूर तक यहां के बने कराहों की मांग थी। लेकिन गुड़ की घटती मांग से आजिज किसानों ने गन्ना चीनी मिलों को बेचना शुरू किया तो फिर कराहों की मांग में गिरावट दर्ज की गई।
सरकारी संरक्षण न मिलने से यह उद्योग दम तोड़ता नजर आ रहा है। यदि सरकार गुड़ के आयुर्वेदिक गुणों का प्रचार-प्रसार करे तो फिर गुड़ की महत्ता स्पष्ट होने से उसकी मांग में वृद्धि हो सकती है। ऐसे में इस क्षेत्र के कराहा उद्योग को नया जीवन मिलने की संभावना बढ़ जाएगी।
कराहा के कारीगर समारू राम विश्वकर्मा ने बताया कि यदि सरकार इस उद्योग पर ध्यान दे तो फिर गांव में ही हमें व हमारे बच्चों को रोजगार मिल जाएगा।
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