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इस आधार पर UNESCO देता है विश्व धरोहर का दर्जा
सांची स्तूप के बारे में जानने से पहले ये बात समझ लें कि, यूनेस्को किस आधार पर किसी स्थल को विश्व धरोहर का स्थान देता है। बता दें कि, यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल की सूची में उन स्थलों को शामिल किया जाता है, जिनका कोई खास भौतिक या सांस्कृतिक महत्व हो। इनमें इस तरह का संदेश प्रदर्शित करने वाले जंगल, झील, भवन, द्वीप, पहाड़, स्मारक, रेगिस्तान, परिसर या शहर को शामिल किया जाता है। हालांकि, अब तक यूनेस्कों द्वारा जारी सूची में पूरे विश्व की 982 धरोहरों को स्थान दिया गया है। यानी ये वो धरोहर हैं, जिन्हें विश्व की धरोहर कहा जाता है। इनमें से 33 विश्व की विरासती संपत्तियां भारत में भी मौजूद हैं। इन 33 संपत्तियों में से 26 सांस्कृतिक संपत्तियां और 7 प्राकृतिक स्थल हैं। इन्ही में से 4 विश्व धरोहरों का गौरव मध्य प्रदेश को भी प्राप्त है, जिसमें से एक नाम विंश्व प्रसिद्ध सांची स्तूप का भी है। आइए जानते हैं इस विश्व धरोहर के बारे में खास बातें।
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सांची का बौद्ध स्तूप है विश्व धरोहर
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से लगभग 52 किलोमीटर दूर रायसेन जिले के सांची में स्थित ये स्तूप भारत ही नहीं विश्वभर के पर्यटकों में काफी लोकप्रीय है। बौद्ध तीर्थ स्थल के रूप में पहचाने जाने वाले सांची स्तूप की सबसे खास बात ये है कि, ये स्तूप भारत के सबसे पुराने पत्थर से बनी इमारतों में से एक है। ये स्मारक तीसरी सदी से बारहवीं सदी के बीच लगभग 1300 वर्षों की अवधि में बनाया गया। इन स्तूपों को बनाने की शुरुआत मूल रूप से सम्राट अशोक ने की थी। इसके बाद समय के कई शासकों ने इसे मूल रूप के अनुसार बनाने का प्रयास किया। स्तूप को 91 मीटर (298.48 फीट) ऊंची पहाड़ी पर बनाया गया है। यूनेस्को ने साल 1989 में इसे भी विश्व धरोहर स्थल घोषित किया था।
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विश्वभर में मिली ख्याति का कारण
इस स्थल को भारत ही नहीं बल्कि विश्वभर में मिली ख्याति का बड़ा कारण इसकी उम्र और गुणवत्ता माना जाता है। बौद्ध स्तूरों के समूह, मंदिरों और सांची के मठ (जिसे प्राचीन काल में काकान्या, काकानावा, काकानादाबोटा और बोटा श्री पर्वत कहते थे) मौजूद सबसे पुराने बौद्ध अभयारण्यों में से एक है। ये स्तूप लगभग संपूर्ण शास्त्रीय बौद्ध काल के दौरान बौद्ध कला और वास्तुकला की उत्पत्ति और उसके विकास की कहानी बयान करते हैं। मुख्य रूप से इस स्तूप का संबंध बौद्ध धर्म से है। यहां इसके अलावा और भी कई बौद्ध संरचनाएं देखने को मिलती हैं।
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भगवान बुद्ध को दी गई इस तरह श्रृद्धांजलि
इतिहास के पन्नों को पलटकर देखें तो पता चलता है कि, मौर्य वंश के सम्राट अशोक द्वारा सांची स्तूप को बनाने के पीछे एक खास उद्देश्य था। उन्होंने भगवान बुद्ध को श्रद्धांजलि देते हुए ये स्तूप बनवाने शुरु किये थे। साथ ही, इसमें भगवान बुद्ध से जुड़ी वस्तुओं के अवशेषों को सहेजकर भी रखा गया था। श्रृद्धांजलि स्वरूप इन स्तूपों पर की गई नक्काशी में बौद्ध धर्म के महापुरुषों की जीवन यात्रा को दर्शाया गया है। इन स्तूपों को एक अर्धगोल गुंबद के रूप में बनाया गया है, जो धरती पर स्वर्ग की गुंबद का प्रतीक भी मानी जाती हैं।
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प्रेम, शांति और साहस के इस प्रतीक में रखा गया वास्तु का विशेष ध्यान
सांची स्तूप मध्यकालीन वास्तु कला का बेहतरीन नमूना है। एक विशाल अर्धपरिपत्र गुंबद के आकार का एक कक्ष है। इस कक्ष की लंबाई 16.5 मीटर और व्यास 36 मीटर है। सांची स्तूप को प्रेम, शांति और साहस का प्रतीक माना जाता है। इसे बनाने में वास्तु का भी खास ध्यान रखा गया है। इसे वास्तु गरिमा की एक समृद्ध विरासत का प्रतीक माना जाता है। यहां बने भित्ती चित्रों का नजारा भी पर्यटकों के बीच खासा अद्भुत और लोकप्रीय रहता है। बेहद शांत जगह होने के साथ ही सांची स्तूप बेहद खूबसूरत भी है।
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इस तरह आसान होगा सांची का सफर
वैसे तो ये विश्व प्रसिद्ध स्थल रायसेन जिले में है, लेकिन राजधानी भोपाल से इसकी दूरी कम है। साथ ही, यहां प्रदेश या देश के बाहर से आने वाले सेलानियों को हवाई और रेल यात्रा का लाभ मिल सकता है। भोपाल से आप चाहें तो रेल के माध्यम से भी सांची पहुंच सकते हैं और किसी ट्रेवल गाड़ी की मदद से भी। भोपाल से सांची के रोड के सफर में लगभग एक घंटे का समय लगेगा, वहीं वाया ट्रेन आप लगभग 40 मिनट में पहुंच सकते हैं।
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