भोपाल। मध्यप्रदेश में अब बिल्डर घर खरीदने वालों को धोखा नहीं दे सकेंगे। केंद्र सरकार द्वारा मई 2016 में लागू कानून के आधार पर मप्र सरकार ने रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी के गठन से संबंधित नियम जारी कर दिए। इसके मुताबिक बिल्डर और प्रमोटर को अपने हर प्रोजेक्ट का अथॉरिटी में रजिस्ट्रेशन कराना होगा। रजिस्ट्रेशन के बाद ही वह प्रोजेक्ट में बिक्री शुरू कर सकेगा। इसके अलावा यदि बिल्डर आपके मकान के पजेशन में देरी करेंगे या आप बिल्डर को देरी से किश्त देंगे तो 11.30 प्रतिशत की दर से हजार्ना चुकाना होगा। यही नहीं, बिल्डर यदि लोगों से धोखाधड़ी करेंगे तो उन्हें जेल के साथ ही पूरे प्रोजेक्ट की लागत की 10 प्रतिशत रकम बतौर जुर्माना देना होगा। आइए जानते हैं इन नियमों से हमें कैसे मिल सकता है लाभ….
यूं समझें इस पूरे एक्ट को…
– प्रॉपर्टी डीलर अब रियल एस्टेट एजेंट कहलाएंगे। इनका बकायदा पंजीयन होगा और यदि गड़बड़ी करेंगे तो सजा भी होगी। – केंद्र सरकार ने मार्च 2016 में केंद्रीय रियल एस्टेट एक्ट लागू किया था। अब इस एक्ट के प्रावधानों को विस्तार देते हुए राज्य सरकार ने नियम लागू किया है।
– इसी कानून के तहत जल्द ही सरकार मप्र रियल एस्टेट अथॉरिटी का गठन जल्द होगा। यही अथॉरिटी बिल्डरों के साथ अन्य सरकारी निर्माण एजेंसियों पर नजर रखेगी।
– अथॉरिटी की वेबसाइट पर सभी बिल्डरों की पूरी जानकारी मिलेगी। बिल्डर या डेवलपर प्रोजेक्ट तब ही शुरू कर पाएंगे, जबकि यहां पंजीयन किया गया हो।
– वर्तमान में चल रहे सभी हाउसिंग और कमर्शियल प्रोजेक्ट के साथ नए प्रोजेक्ट्स में इन नियमों के हिसाब अथॉरिटी से मंजूरी लेनी होगी। बीडीए, हाउसिंग बोर्ड और नगर निगम भी इसके दायरे में आएंगे।
आसानी से नहीं बच पाएंगे बिल्डर
– यदि बिल्डर ने दो साल में फ्लैट देने का वादा किया है और वह इसे ढाई साल में देता है तब छह महीने की देरी के हिसाब से वह आपको लेट फीस देगा।
– यह फीस एसबीआई के प्राइम लेंडिंग रेट से दो प्रतिशत ज्यादा होगी। अभी ये रेट 9.30 प्रतिशत है।
– दो प्रतिशत जोडऩे पर ब्याज दर 11.30 प्रतिशत हो जाएगी। यानी आपको फ्लैट के कुल मूल्य पर देरी के साथ ही यह राशि बिल्डर देगा।
– इससे आपने बैंक से जो होम लोन लिया है, उसकी किश्त चुका सकेंगे।
– यदि आपके साथ धोखाधड़ी या किसी वजह से प्रोजेक्ट में परेशानी आती है तो बिल्डर को जेल के साथ कुल लागत के 10 प्रतिशत जुर्माना देना होगा।
– यूं समझें कि यदि उसका प्रोजेक्ट 200 करोड़ रुपए का है तो उसे 20 करोड़ की भारी-भरकम रकम भी अदा करनी होगी।
– हर प्रोजेक्ट में खुले क्षेत्र में पार्किंग की संख्या बतानी होगी।
– हर तीन महीने में प्रोजेक्ट की हर छोटी-मोटी जानकारी वेबसाइट पर मय फोटो के साथ देनी होगी।
– भले ही पहले बुकिंग किसी भी क्षेत्र पर हुई हो पर अब पुराने प्रोजेक्ट में भी कार्पेट क्षेत्र बताना होगा।
– आवासीय प्रोजेक्ट पर 20 रुपए प्रतिवर्ग मीटर और कमर्शियल में 100 रुपए प्रति वर्गमीटर की पंजीयन फीस देनी होगी।
हम पर यह असर
– बिल्डरों द्वारा लेट पजेशन देने की समस्या से निजात मिलेगी। अथॉरिटी से अपील संभव।
– बिल्डरों की धोखाधड़ी से बच पाएंगे। विज्ञापन में बढ़ा-चढ़ा कर दावे नहीं होंगे।
– हर सूचना वेबसाइट पर होगी। यानी बिल्डर चाहकर भी गुमराह नहीं कर पाएंगे।
बिल्डरों पर ये होगा असर
– परमिशन के लिए एक और खिड़की। यानी भ्रष्टाचार और बढ़ सकता है।
– मौजूदा प्रोजेक्ट के दायरे में आने से बिल्डरों को बुकिंग में मुश्किल आएगी। उन्हें 50 प्रतिशत रकम का प्रबंध करना होगा।
– प्री बुकिंग बंद होना और जेल की सजा जैसे प्रावधान से कई छोटे बिल्डर इस क्षेत्र से बाहर हो जाएंगे।
आपत्ति और सुनवाई का मौका ही नहीं
टीएंडसीपी का कानून हो या कोई भी कानून सरकार जनता की राय जानने के लिए उस पर सुझाव और आपत्ति मंगाती है। लेकिन इस नियम में किसी को कोई मौका नहीं दिया गया। न तो इसकी कभी चर्चा हुई न यह सावज़्जनिक हुआ। सीधे ही लागू कर दिया है। हालांकि नगरीय प्रशासन का तर्क है कि नगर पालिक एक्ट 1956 के तहत नियम बनाने में सुनवाई और आपत्ति का प्रावधान नहीं है। लेकिन यह नियम इस एक्ट से बाहर का है। और इसी एक्ट एक नियम आउटडोर मीडिया रूल्स में सरकार ने दावे- आपत्ति आमंत्रित किए थे।
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