मुख्यमंत्री के लिए नाम आते ही मोहन यादव ने इसे महाकाल बाबा की कृपा बताया है, लेकिन यह मान्यता सदियों से चली आ रही है कि महाकाल की नगरी में कोई बड़ा नेता, राजा या राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री रात्रि विश्राम नहीं करते। क्योंकि बाबा महाकाल खुद री राजाधिराज है।
www.patrika.com पर जानिए अब तक कौन-कौन नेता यहां रात्रि विश्राम के लिए रुके और कितनों की कुर्सी छिन गई।
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सिंधिया घराने का कोई सदस्य नहीं रुकता
महाकाल ही यहां के राजाधिराज हैं और दूसरा कोई राजा यहां रात नहीं बिताता। वे दर्शन करने के बाद चले जाते हैं। सिंधिया राजघराने का कोई भी सदस्य यहां कभी नहीं रुका। वे उज्जैन दर्शन करने जरूर आते हैं, लेकिन वापस लौट जाते हैं। इनके अलावा प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समेत कई प्रदेश सरकार के मंत्री भी कभी रात उज्जैन में नहीं रुकते हैं।
जो रुके, उनकी छिन गई कुर्सी
इंदिरा गांधी 29 दिसंबर 1979 को महाकाल मंदिर आई थीं। जब वे मंदिर पहुंची तब भस्म आरती चल रही थी। इसलिए उन्होंने बाहर से ही दर्शन किए थे।ऐसा माना जाता है कि जो राजा या नेता यहां रात्रि विश्राम करता है, उसे अपना पद छोड़ना पड़ता है। देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के बारे में भी यह कहा जाता है कि वे एक रात उज्जैन में रुके थे और दूसरे ही दिन उनकी सरकार गिर गई थी। इसी के साथ कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदियुरप्पा भी उज्जैन में ठहरे थे, इसके 20 दिन बाद ही उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया था।
क्यों है ऐसी मान्यता
प्राचीन शहर उज्जैन विक्रमादित्य के समय राज्य की राजधानी थी। मंदिर से जुड़े रहस्य और सिंघासन बत्तीसी के मुताबिक राजा भोज के समय से ही कोई भी राजा उज्जैन में रात्रि निवास नहीं करता है। इसे कई लोग कालिदास की नगरी भी मानते हैं। इसी शहर में बाबा महाकालेश्वर कि 12 ज्योतिर्लिंग में से एक शिवलिंग उज्जैन में भी है, यह ऐसा शिवलिंग है जो दक्षिण मुखी है। ऐसा कहा जाता है कि दक्षिण दिशा मृत्यु या काल की दिशा होती है, इसीलिए इस शिवलिंग को महाकाल कहते हैं।
यह भी मान्यता प्रचलित है कि दूषण नाम के असुर का उज्जयिनी में काफई आतंक था, लोग परेशान हो चुके थे। उनकी रक्षा के लिए भगवान शिव महाकाल के रूप में प्रकट हुए। महाकाल ने दूषण का वध किया और लोगों को आतंक से छुटकारा दिलाया। राक्षस से छुटकारा दिलाने के बाद लोगों ने भगवान शिव से प्रार्थना की कि वे उज्जैन में निवास कर करें, यह बात भगवान ने मान ली और वे उज्जैन में ही शिवलिंग के रूप में बस गए।
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