scriptजो जनता का पूरा कर्ज उतार पाए उसी के नाम पर बनता है संवत, विक्रमादित्य ऐसे आखिरी राजा | Nal samvatsar 2079 : vikram samvat 2079 and Vikrkamditya connection | Patrika News
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जो जनता का पूरा कर्ज उतार पाए उसी के नाम पर बनता है संवत, विक्रमादित्य ऐसे आखिरी राजा

vikram samvat in 2022: कालगणना का केन्द्र उज्जैनथी Vikrmaditya की राजधानी, Ujjain से चलता था देशभर में शासन, शकों के अत्याचार खत्म करने के बाद इन्हीं के नाम पर बना विक्रम संवत आज से होगा शुरू

भोपालApr 02, 2022 / 01:43 am

राजीव जैन

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vikram samvat in 2022

उज्जैन. आज से नए संवत्सर की शुरुआत हो रही है। विक्रम संवत कलैंडर का यह 2079वां वर्ष होगा। इस संवत की शुरुआत उज्जैन के राजा विक्रमादित्य (Raja Vikrmaditya Ujjain) ने की थी। यूं दुनिया में कई तरह के कलैंडरों को मान्यता है। पर सनातन धर्म में विक्रम संवत (Vikram Samvat 2079) का खासा महत्व है। देश में सबसे लोकप्रिय कैलेंडर यही है और इसी आधार पर सभी रीति-रिवाज मनाए जाते हैं। कालगणना के केंद्र उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने शकों को हराने के बाद विक्रम संवत की घोषणा की। इसके बाद भी देश में कई प्रतापी और बड़े राजवंश हुए, लेकिन किसी और के नाम पर संवत शुरू नहीं हो पाया। इससे पहले युधिष्ठिर संवत, कलियुग संवत और सप्तर्षि संवत प्रचलन में थे। ऐसा नहीं है कि संवत कोई भी राजा घोषित कर सकता है। इसके लिए कई नियमों का पालन करना होता है। इसमें खास यह है कि उनके राज्य में जनता पर कर्ज न हो, राज्य धन धान्य से परिपूर्ण हो, शासन वैभवशाली हो यानी ऐसा राजा हो उसके अधीन आने वाली पूरी जनता का कर्ज उतार पाए।विक्रमादित्य की राजधानी उज्जैन को ही विश्व में प्राचीन कालगणना का केंद्र माना गया है। नवसंवत्सर से ही सृष्टि का उदय भी माना जाता है। नए वर्ष से ही प्रकृति में परिवर्तन होता है और पर्व-त्योहार शुरू हो जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार भी नव संवत जिस दिन आरंभ होता है उस दिन के वार के अनुसार ही राजा का निर्धारण होता है। इस वर्ष विक्रम संवत में शनि राजा और गुरु मंत्री होंगे।
विक्रम संवत ईस्वी से 57 साल आगे
महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ उज्जैन (Maharaja Vikramaditya Shodhpeeth Swaraj Sansthan) के डायरेक्टर डॉ. श्रीराम तिवारी का कहना है कि राजा विक्रमादित्य के नाम पर बना विक्रम संवत ईस्वी से 57 वर्ष आगे है। यानी जब ईस्वी सहित अन्य कालगणना नहीं थी, उससे पहले विक्रम संवत प्रचलित था। विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वारहमिहीर ने अपने खगोलशास्त्र के ज्ञान का इस कलैंडर को बनाने में खास उपयोग किया। विक्रम संवत को देश-दुनिया में बसे भारतीय तो मानते ही हैं, पड़ोसी देश नेपाल में भी इसी कैलेंडर के अनुसार रीति-रिवाज मनाए जाते हैं। भारत के शासकीय कैलेंडर में भी विक्रम संवत को मान्यता दी है।
इस वर्ष राक्षस संवत्सर
पंचागकर्ता और ज्योतिषी पं. आनंदशंकर व्यास बताते हैं कि चैत्र शुक्ल का दिन सृष्टि के आरंभ और विक्रम संवत शुरू होने का दिन है। इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता हैै। विक्रम संवत में एक वर्ष और सात दिन का सप्ताह है। इसके महीने का निर्धारण सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर होता है। 12 राशियां बारह सौर मास है, जिसके आधार पर महीनों का नामकरण हुआ। विक्रम संवत 2079के दो नाम राक्षस संवत्सर और नल संवत्सर (Nal samvatsar) दिए गए। वाराणसी के विद्वानों ने राक्षस संवत्सर (Rakshak samvatsar) नाम को मान्यता दी है, इसलिए यही नाम प्रचलन में रहेगा।

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