महाराजा विक्रमादित्य शोध पीठ उज्जैन (Maharaja Vikramaditya Shodhpeeth Swaraj Sansthan) के डायरेक्टर डॉ. श्रीराम तिवारी का कहना है कि राजा विक्रमादित्य के नाम पर बना विक्रम संवत ईस्वी से 57 वर्ष आगे है। यानी जब ईस्वी सहित अन्य कालगणना नहीं थी, उससे पहले विक्रम संवत प्रचलित था। विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वारहमिहीर ने अपने खगोलशास्त्र के ज्ञान का इस कलैंडर को बनाने में खास उपयोग किया। विक्रम संवत को देश-दुनिया में बसे भारतीय तो मानते ही हैं, पड़ोसी देश नेपाल में भी इसी कैलेंडर के अनुसार रीति-रिवाज मनाए जाते हैं। भारत के शासकीय कैलेंडर में भी विक्रम संवत को मान्यता दी है।
पंचागकर्ता और ज्योतिषी पं. आनंदशंकर व्यास बताते हैं कि चैत्र शुक्ल का दिन सृष्टि के आरंभ और विक्रम संवत शुरू होने का दिन है। इस दिन से मौसम में परिवर्तन होता हैै। विक्रम संवत में एक वर्ष और सात दिन का सप्ताह है। इसके महीने का निर्धारण सूर्य और चंद्रमा की गति के आधार पर होता है। 12 राशियां बारह सौर मास है, जिसके आधार पर महीनों का नामकरण हुआ। विक्रम संवत 2079के दो नाम राक्षस संवत्सर और नल संवत्सर (Nal samvatsar) दिए गए। वाराणसी के विद्वानों ने राक्षस संवत्सर (Rakshak samvatsar) नाम को मान्यता दी है, इसलिए यही नाम प्रचलन में रहेगा।