वहीं पीएम बनने के बाद भी वे बीजेपी को बोहरा और पसमांदा मुसलमान को एक साथ लाने की बात लगातार कर रहे हैं। अब खासतौर पर आम चुनाव 2024 पर वे बीजेपी को इन मुसलमानों को एक साथ लाने की बात आए दिन करते हैं। लेकिन अब सवाल यह है कि कौन हैं ये पसमांदा मुसलमान? और पीएम इन्हें बीजेपी से जोडऩे की बात पर क्यों जोर देते हैं? अगर आपके जेहन में भी यही सवाल है तो इस न्यूज को ध्यान से पढ़ें आपको यहां आपके हर सवाल का जवाब जरूर मिलेगा…
जानें कौन हैं पसमांदा मुस्लिम
दरअसल मुस्लिमों का एक ऐसा वर्ग है़ जो पिछड़ा या कमजोर माना जाता है। यही वर्ग पसमांदा मुस्लिम कहलाता है। देश में मुसलमानों की कुल आबादी के 85 फीसदी को पसमांदा कहा जाता है। यानी वो मुस्लिम जो दबे हुए हैं, इनमें दलित और बैकवर्ड मुस्लिम आते हैं। हिंदुओं की तरह भारतीय मुस्लिमों में भी जातीय व्यवस्था है। मुस्लिमों के उच्च वर्ग या सवर्ण को अशरफ कहते हैं, लेकिन इसके अलावा ओबीसी और दलित मुस्लिम हैं, उन्हें पसमांदा कहा जाता है। पसमांदा मूल तौर पर फारसी का शब्द है, जिसका मतलब होता है, वो लोग जो सामाजिक, आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। जबकि 15 प्रतिशत में सैयद, शेख, पठान जैसे उच्च जाति के मुसलमान हैं। अगड़े मुसलमान सामाजिक और आर्थिक तौर पर ये मजबूत हैं और सभी सियासी दलों में इन्हीं का वर्चस्व रहा है जबकि, पसमांदा समाज सियासी तौर पर हाशिए पर ही रहा है। पीएम मोदी इन्हीं मुसलमानों को पार्टी से जोडऩे के लिए बार-बार जोर दे रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि पूरे मुसलमानों के बजाय इन्हें जोडऩा आसान है। पसमांदा मुस्लिमों को सरकार की जनकल्याणा योजनाओं का लाभ देकर आसानी से पार्टी के करीब लाया जा सकता है।
कई जातियों में बंटा है पसमांदा मुस्लिम समुदाय
मुसलमानों के ओबीसी तबके को पसमांदा मुस्लिम कहा जाता है। इनमें कुंजड़े (राईन), जुलाहे (अंसारी), धुनिया (मंसूरी), कसाई चिकवा, कस्साब (कुरैशी), फकीर (अलवी), नाई (सलमानी), मेहतर (हलालखोर), ग्वाला (घोसी), धोबी, गद्दी, लोहार-बढ़ई (सैफी), मनिहार (सिद्दीकी), दर्जी (इदरीसी), वन-गुज्जर, गुर्जर, बंजारा, मेवाती, गद्दी, मलिक गाढ़े, जाट, अलवी, जैसी जातियां आती हैं। इस तरह से पसमांदा मुस्लिम तमाम जातियों में बंटा हुआ है। पीएम मोदी इन्हीं पसमांदा मुस्लिमों को बीजेपी से जोडऩे पर बार-बार जोर दे रहे हैं।
बीजेपी कैसे जोड़ रही है पसमांदा मुस्लिम समुदाय को
बीजेपी के वरिष्ठ नेता बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुसलमानों के उस तबके को समाजिक तौर पर उठाने की बात कर रहे हैं, जो सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक रूप से पिछड़े हुए हैं। बीजेपी सरकार द्वारा चलाई जा रही जनकल्याणकारी योजनाओं का लाभ पसमांदा मुस्लिमों को दिया जा रहा है। पसमांदा समाज के साथ पहली बार किसी सरकार या पार्टी ने इस तरह से संवाद करने के लिए कहा है। पीएम मोदी की इस पहल को पसमांदा मुस्लिम अपनी राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक भागीदारी बढ़ाने के लिहाज से देखें, क्योंकि तीनों ही क्षेत्र में यह पिछड़े हुए हैं।
पसमांदा मुस्लिम संगठन के प्रमुख करते हैं इसका विरोध
वहीं पसमांदा मुस्लिम संगठन के प्रमुख इसका विरोध करने की ही बात करते हैं। इनका मानना है कि बीजेपी मुसलमानों को बांटना चाहती है। एक तरफ तो बीजेपी हिन्दु समुदाय की तमाम जातियों को एक करना चाहती है, तो वहीं मुसलमानों को जातियों के नाम पर अलग करना चाहती है। आपको बता दें कि बीजेपी मुस्लिमों को जोडऩे के अपने प्रयासों को लगातार तेज कर रही है, लेकनि अब तक उसे कोई सफलता नहीं मिली है। मुस्लिम समुदाय का वोट बैंक मोटे तौर पर बीजेपी से दूर ही रहा है। इसके बावजूद बीजेपी उन्हें पार्टी से जोडऩे के लिए कोई भी कोर कसर नहीं छोडऩा चाहती।