वर्ष 2001 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री बाला बच्चन ने इसे सुपर स्पेशिएलिटी सेंटर बनाने की घोषणा की थी। काम जोर-शोर से शुरू हुआ। संगमरमर के शिलालेख पर इसका उल्लेख कर स्थापित भी किया गया, लेकिन प्रस्ताव और शिलान्यास पत्थर दोनों गायब हो गए। अब वहां पोर्च बना हुआ है।
लगातार कम हो रहे डॉक्टर
जेपी अस्पताल में 65 डॉक्टर हैं। इनमें 26 डॉक्टरों की रोज ओपीडी में ड्यूटी रहती है, जबकि ओपीडी में मरीजों की औसत संख्या 2900 तक है। अस्पताल में 10 साल पहले जब सालाना चार लाख मरीज आते थे, तब डॉक्टरों की संख्या 72 थी। इमरजेंसी ड्यूटी के लिए 11 अलग डॉक्टर थे।
वर्ष 2014-15 में तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री नरोत्तम मिश्रा ने 1250 बिस्तर की क्षमता वाला अस्पताल बनाने की घोषणा की थी। इस घोषणा पर काम किया और डीपीआर तैयार भी हुई। बाद इस योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
प्रदेश का सबसे बड़ा जिला अस्पताल
वर्ष 2015 में जेपी अस्पताल में जी प्लस 9 बिल्डिंग बना कर सुपर स्पेशिएलिटी सेंटर तैयार करने का प्रस्ताव भी आया। पूरा काम 2019 में पूरा होना होना था। जगह चिह्नित भी हो गई, लेकिन प्रस्ताव फाइलों से बाहर नहीं आया।
यहां 30 मेडिकल ऑफिसर और 35 विशेषज्ञ हैं। इनमें आधे से ज्यादा पैथोलॉजी, रेडियोलॉजी, कोर्ट, मेडिकल बोर्ड, एनिस्थीसिया, नाइट ड्यूटी, इमरजेंसी के साथ विशेष क्लीनिक और वीआइपी ड्यूटी में रहते हैं। ऐसे में ओपीडी में बमुश्किल 20 से 25 डॉक्टर ही बचते हैं।
वर्ष 2009 -10 में मंत्री अनूप मिश्रा ने जेपी को मेडिकल कॉलेज बनाने का सुझाव दिया था। जोर-शोर से काम शुरू हुआ, लेकिन अटक क्यों गया, पता नहीं। अस्पताल की मूल समस्याएं जस की तस हैं।
डॉ. एसके सक्सेना, तत्कालीन अस्पताल अधीक्षक
प्रस्ताव आया है। इस सुझाव पर काम किया जा रहा है। अगर संभव हुआ तो जेपी को मेडिकल कॉलेज बनाया जाएगा।
डॉ. विजयलक्ष्मी साधौ, मंत्री चिकित्सा शिक्षा विभाग