करहल सीट पर गरमाई सियासत, मैदान में उतरे दो यादव, समझिए क्या कहते हैं समीकरण
Karhal Vidhan Sabha Seat: भाजपा के दांव से मैनपुरी की करहल विधानसभा सीट पर खलबली मची हुई है। करहल के चुनावी मैदान में सपा और भाजपा ने यादव समाज पर दांव लगाया है। आइए जानते हैं कि क्या कहते हैं समीकरण…
Karhal Vidhan Sabha Seat: उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की करहल सीट इस बार मुलायम परिवार का अखाड़ा बन गई है। यह सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। यहां से साल 2022 में अखिलेश यादव ने भाजपा प्रत्याशी केंद्रीय मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल को हराया था। लेकिन इस बार भाजपा ने मुलायम सिंह यादव के दामाद और सांसद धर्मेंद्र यादव के सगे बहनोई अनुजेश यादव को टिकट देकर इस लड़ाई को रोचक बना दिया है।
सपा ने यहां से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के पोते और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के दामाद तेज प्रताप को मैदान में उतारा है। करहल विधानसभा में शुरू से ही सपा का गढ़ रही है। इस सीट पर सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद उपचुनाव हो रहे हैं। अखिलेश अब कन्नौज से सांसद चुने गए है। उन्होंने यह सीट खाली की है और अपने भतीजे तेजप्रताप को यहां से उम्मीदवार घोषित किया है।
7 विधानसभा चुनावों में से 6 बार जीती सपा
करहल में भाजपा ने दूसरी बार यादव चेहरे पर दांव लगाया है। इससे पहले 2002 में सोबरन सिंह यादव भाजपा के टिकट पर जीत हासिल कर चुके हैं। हालांकि, बाद में उन्होंने सपा का दामन थाम लिया था। यादव मतों की बहुलता वाली इस विधानसभा सीट पर वर्ष 1993 से 2022 तक हुए सात विधानसभा चुनावों में से छह बार सपा जीती हैं, जबकि भाजपा केवल एक बार वर्ष 2002 में जीत चुकी है। बीते चार चुनावों से सपा लगातार विरोधियों को पटखनी दे रहे हैं। वर्ष 2022 में सपा मुखिया अखिलेश यादव ने अपना पहला विधानसभा चुनाव इसी सीट पर लड़ा था। उपचुनाव में अखिलेश यादव की विरासत संभालने के लिए सपा ने पूर्व सांसद तेज प्रताप यादव को प्रत्याशी घोषित किया है।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यादव बाहुल्य यह सीट सपा का गढ़ मानी जाती है। माना जाता है कि लोग यहां प्रत्याशी को नहीं, सपा के नाम पर वोट देते हैं। मैनपुरी जनपद में सपा का दबदबा रहा। लेकिन 2017 के चुनाव में भोगांव विधानसभा और 2022 के चुनाव में मैनपुरी विधानसभा की सीट भाजपा ने सपा से छीन ली। अब यहां चार में से दो विधायक, मैनपुरी से जयवीर सिंह, भोगांव से रामनरेश अग्निहोत्री भाजपा के हैं और किशनी से बृजेश कठेरिया और करहल से अखिलेश यादव सपा से चुने गए थे। अखिलेश ने करहल से इस्तीफा दे दिया है। इस सीट से सोबरन सिंह यादव चार बार और बाबूराम यादव पांच बार विधायक चुने जा चुके हैं।
करहल विधानसभा में तकरीबन तीन लाख 75 हजार मतदाता है। जातीय समीकरण की बात करें, तो यहां एक लाख 30 हजार यादव और 60 हजार अनुसूचित जाति के मतदाता हैं। इसके साथ ही 50 हजार शाक्य, 30 हजार ठाकुर, 30 हजार पाल/ बघेल, 25 हजार मुस्लिम, 20 हजार लोधी, 20 हजार ब्राह्मण और 15 हजार के करीब बनिया समाज के मतदाता हैं।
भाजपा ने 2002 में जीता था चुनाव
करहल के स्थानीय पत्रकार दिनेश शाक्य कहते हैं कि करहल में अब सपा बनाम भाजपा नहीं, बल्कि यादव बनाम यादव की लड़ाई होगी। लेकिन, मतदाताओं का झुकाव सपा की तरफ ज्यादा दिखाई दे रहा है। भाजपा ने यहां पूरी ताकत झोंक रखी है। सपा की ओर से अखिलेश यादव ने खुद कमान संभाल रखी है। करहल सीट पर दो दामादों का मुकाबला है। एक लालू के, तो दूसरे मुलायम के। यहां से भाजपा ने 2002 में चुनाव जीता था। इसके बाद सोबरन सिंह सपा में शामिल हो गए। उसके बाद से यह सीट लगातार सपा के पास है।
यहां पर जातीय समीकरण को देखें तो सबसे ज्यादा यादव है। इसके बाद शाक्य और पाल है। भाजपा उम्मीदवार की पहचान भाजपा के रूप में नहीं, वह धर्मेंद्र यादव के बहनोई के रूप में जाने जाते रहे हैं। इनकी मां सपा से विधायक रह चुकी हैं। भाजपा का यह दांव कितना फिट होगा यह तो आने वाला वक्त बताएगा। शाक्य ने बताया कि सैफई परिवार इस चुनाव में एकजुट नजर आ रहा है। इसकी बानगी नामांकन के दौरान देखने को मिली। तेज प्रताप के प्रचार में डिंपल यादव लगातार सक्रिय हैं।
एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक अमोद कांत मिश्रा का कहना है कि भाजपा ने यहां पर 2002 का पाशा फेंका है, अगर यह चला तो परिणाम में फेरबदल की संभावना बन सकती है। हालांकि यहां जातीय फैक्टर महत्वपूर्ण है। यादवों का झुकाव मुलायम परिवार की तरफ है। क्योंकि इस क्षेत्र के लिए उन्होंने बहुत काम किया है। हालांकि भाजपा ने यादव वोट बैंक में सेंधमारी के लिए ही अनुजेश को मैदान में उतारा है। इसके अलावा ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय भी इस सीट पर फुटकर मात्रा में हैं, जो भाजपा के वोटर माने जाते हैं। इनको साधने के लिए भाजपा ने ब्रजेश पाठक को उतारा है। वहीं शाक्य और पिछड़ा वर्ग को साधने के लिए केशव मौर्या भी उतरेंगे। यहां पर बसपा ने भी शाक्य उम्मीदवार उतारा है। उन्होंने बैकवर्ड और दलित कॉम्बिनेशन बनाने के लिए यह दांव चला है। अगर बसपा का उम्मीदवार ठीक से चुनाव लड़ गया, तो सपा के वोट में सेंधमारी कर सकता है।
चंद्रशेखर ने भी उतारा उम्मीदवार
उधर, चंद्रशेखर ने भी दलित वोट में सेंधमारी के लिए अपना उम्मीदवार उतारा रखा है। इस चुनाव में सपा को बड़ा अंतर बनाए रखने की चुनौती है। समाजवादी पार्टी के जिला अध्यक्ष आलोक शाक्य कहते हैं कि सपा पहले ही चुनाव जीत चुकी है। हम मार्जिन बढ़ाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। क्योंकि यह सपा का पुराना गढ़ है। भाजपा के उम्मीदवार का इस क्षेत्र में कोई असर नहीं है। बसपा के शाक्य उम्मीदवार उतारने पर उन्होंने कहा कि यहां पर सिर्फ एक ही शाक्य है। शाक्य एकमुश्त सपा को ही वोट देंगे। चंद्रशेखर का यहां कोई असर नहीं है। ऐसे उम्मीदवार हर कोई उतार देता है। नेता जी की धरती है, उनका सम्मान सभी जाति धर्म के लोग करते हैं। भाजपा सिर्फ खोखले वादे करती है। इनका जमीन पर कोई काम नहीं है। किसान नौजवान सब परेशान हैं। तेज प्रताप यहां बड़े अंतर से चुनाव जीतेंगे।
भाजपा के जिला अध्यक्ष राहुल चतुर्वेदी ने कहा कि भाजपा इस बार यहां चुनाव जीतने जा रही है। अनुजेश यादव 10 वर्षों से हमारी पार्टी में हैं। यहां पर विकास और अपराध मुक्त भाजपा की सरकार चल रही है। करहल माफिया और अपराध मुक्त है। यहां के लोग अमन चैन से रह रहें है। यहां योगी और मोदी की लोकप्रियता है। हमारा उम्मीदवार बड़े अंतर से चुनाव जीतेगा।
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