भोपाल/ राजगढ़। प्रदेश के दो पूर्व मुख्यमंत्री
उमा भारती और
दिग्विजय सिंह की आपसी खींचतान किसी से छिपी नहीं हैं। तू डाल-डाल मैं पांत-पांत की तर्ज पर ये दोनों आए दिन सुर्खियों में बने रहते हैं। एक-दूसरे को बिल्कुल न सुहाने के बाद भी एक दर ऐसा भी है जहां दोनों एक साथ शीश झुकाते हैं। यहां सर झुकाए बिना उनके शुभ काम शुरू नहीं होते। हम बात कर रहे हैं राजगढ़ के सिद्धपीठ मां जालपा देवी मंदिर की।
यहीं से शुरू होता है चुनाव प्रचार
मंदिर के महंत और पुजारी आदि बताते हैं कि
दिग्विजय सिंह और
उमा भारती जब भी चुनाव प्रचार के लिए अथवा किसी बड़ी बैठक आदि में शामिल होने जाते हैं तो पहले इस मंदिर में माथा जरूर टेकते हैं। उनके अलावा स्थानीय नेता भी अपने चुनाव का बिगुल इसी मंदिर से बजाते हैं। पिछले कुछ सालों से मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपने परिवार के साथ इस मंदिर में दर्शनों के लिए आ रहे हैं। वे नवरात्र में यहां विशेष पूजा का आयोजन भी करवाते हैं।
होती हर मनोकामना पूरी
मान्यता के अनुसार इस मंदिर पर जो भी मुराद उल्टा सातिया बनाकर मांगी जाती है वह पूरी होती साल दर साल सीधे सातियां की बढ़ती संख्या यहां देवी के चमत्कारों की कहानी कहते है। कहा जाता है जिन लोगों को संतान प्राप्ति नहीं हो रही है वे यहां आकर उल्टा सांतिया बनाते हैं और मुराद पूरी होने पर उसी सांतियां को सीधा बनाकर देवी की पूजा करवाते हैं।
हर धर्म की है मान्यता
इस मंदिर में हर साल स्थानीय लोग 11 किलोमीटर की चुनरी चढ़ाने आते हैं। खासबात यह है कि इस कार्यक्रम में हिन्दुओं के साथ मुस्लिम समाज के लोग भी शामिल होते हैं।
बारिश के लिए हो रही पूजा
इन दिनों सिद्धपीठ मां जालपा देवी मंदिर में बारिश के लिए विशेष पूजा आयोजित की गई है। जिसमें आसपास के किसान बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं। इस पूजा में सिद्धपीठ मां जालपा देवी को विशेष श्रृंगार करवाया जाता है। इसके बाद महायज्ञ और भंडारे आदि का आयोजन होता है। कहा जाता है कि इस मंदिर में महायज्ञ करवाने के बाद जीवन में आने वाली मुश्किल आसान हो जाती है।
ऐसी है मंदिर की कहानी
कहते है 16 वी शताब्दी में जालपा देवी की मूर्ति जमीन में से निकली थी। जिसकी स्थापना भील राजाओ द्वारा की गई। बाद में रियासत काल आया तो राजाओं ने मूर्ति की पूजन शुरू कर दी। अब यह मंदिर एक बड़े ट्रस्ट रूप में काम कर रहा है। यहां के मुख्य पुजारी समेत भील समाज के लोग ही है जो आज भी पहाड़ी के नीचे गांव में निवास करते है।
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