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भोपाल

जहरीली गैस और इंडस्ट्रियल हादसों में MP नंबर वन, सबसे ज्यादा हुई मौतें

यह खुलासा एनसीआरबी की ओर से जारी एक रिपोर्ट में हुआ है। एक्सीडेंटल कैजयूल्टीज एंड सुसाइड इन इंडिया पर आधारित इस रिपोर्ट ने प्रदेश भर की औद्योगिक इकाइयों में सुरक्षा के प्रबंधों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

भोपालJan 04, 2017 / 04:39 pm

sanjana kumar

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भोपाल। इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट्स में सबसे ज्यादा मौतें मध्यप्रदेश में होती हैं। एनसीआरबी की इस रिपोर्ट ने मप्र को एक बार फिर चर्चा में ला दिया है। इंडस्ट्रियल एक्सीडेंट्स में मौतों के मामलों में पहले पायदान पर आने वाले एमपी को लेकर यह खुलासा एनसीआरबी की ओर से जारी एक रिपोर्ट में हुआ है। एक्सीडेंटल कैजयूल्टीज एंड सुसाइड इन इंडिया पर आधारित इस रिपोर्ट ने प्रदेश भर की औद्योगिक इकाइयों में सुरक्षा के प्रबंधों को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं।

जहरीली गैसों से सबसे ज्यादा मौतें भी एमपी में

एनसीआरबी की इस रिपोर्ट में खुलासा किया गया है देशभर की औद्योगिक इकाइयों में जहरीली गैसों के शिकार होने वाले लोगों की संख्या भी एमपी में ही सबसे ज्यादा है। जो दर्शाती है कि 1984 की दुनिया की सबसे बड़ी गैस ट्रेजेडी भी एमपी को सबक नहीं सिखा पाई। 


जानें ये फैक्ट्स

* औद्योगिक दुर्घटनाओं और जहरीली गैसों के कारण मप्र में सबसे ज्यादा मौतें होती हैं 
* एनसीआरबी की रिपोर्ट में खुलासा
* 2015 में 213 लोग औद्योगिक दुर्घटनाओं में मारे गए।
* इनमें से सबसे ज्यादा मौतें अकेले मध्यप्रदेश में हुईं। इनकी संख्या 55 दर्ज की गई।
* इसके बाद गुजरात का नंबर है। यहां 31 लोग औद्योगिक दुर्घटनाओं का शिकार हुए हैं। जबकि राजस्थान में 28 लोगों की मौत हुई। जिसके बाद राजस्थान का नंबर तीसरे स्थान पर रहा।


* जबकि छत्तीसगढ़ में 17 मौतों के बाद यह चौथे स्थान पर रहा।
* जबकि 2014 के आंकड़ों के मुताबिक मप्र में केवल 12 केस ही ऐसे सामने आए थे। 
* यही नहीं जहरीली गैसों से मरने वाले लोगों की संख्या के मामलों में भी मध्यप्रदेश पहले नंबर पर है। 
* यहां 116 मामले ऐसे सामने आए जिनमें जहरीली गैसों का शिकार हुए लोगों की मौत हो गई।
* जबकि दूसरे नंबर पर तमिनाडु का नाम रहा। यहां 99 मौतें हुईं।

* तीसरे नंबर पर गुजरात और चौथे नंबर पर आंध्र प्रदेश का नाम शामिल है।
* राजस्थान में कुल 23 लोगों की मौत हुई।
* जबकि पूरे देश में कुल 394 लोग जहरीली गैसों का शिकार होने के कारण मौत की नींद सोए।
* मध्यप्रदेश में 2014 में ये आंकड़े केवल 14 थे। 

* जबकि 1984 की गैस ट्रेजेडी को लेकर मप्र का नाम पहले ही बदनाम है। आधिकारिक रूप से उस समय मिथेल आईसोसाइनेट की चपेट में आने से 5000 लोगों की मौत पुष्टि की गई थी। जबकि सोशल एक्टिविस्ट के मुताबिक ये संख्या उस समय 20 हजार थी और करीब 25 हजार लोग पीडि़त हुए थे।
* प्रदेश के 51 जिलों में केवल 20 अधिकारी तैनात हैं। जो प्रदेश की सभी औद्योगिक इकाइयों का समय-समय पर इंवेस्टिगेशन करते हैं।
* जिम्मेदारों के मुताबिक अधिकारियों की कमी के बावजूद स्टाफ प्रदेश की औद्योगिक इकाइयों का नियमित रूप से निरीक्षण करते हैं। 
* वहां कार्यरत कर्मचारियों को सुरक्षा के गुर सिखाए जाते हैं। सुरक्षा को लेकर जागरुकता का ये पाठ अधिकारी डिजास्टर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट भोपाल की मदद से करते हैं।

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