पंडित सुनील शर्मा के अनुसार देवी मां के नौ स्वरूपों की नवरात्र में पूजा होती है और मां के हर स्वरूप का अपना एक खास महत्व है। इन्हीं में से नवदुर्गा के छठवें स्वरूप में मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। जिनके बारे में मान्यता है कि वे मनपसंद वर ही नहीं बल्कि यदि किसी के विवाह में विलंब love marriage हो रहा हो तो उसे भी दूर करती हैं।
वर प्राप्ति के लिए:
माना जाता है कि जिन कन्याओं के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन मां कात्यायनी MAA Katyayani Puja Vidhi की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हें मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
‘ऊॅं कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि! नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:।’ वहीं कुछ युवतियां संकल्प तो लेती हैं, लेकिन इसके लिए कोई समय निर्धारित न करते हुए विवाह के बाद अपने पति से इसका परायण करतीं हैं। माना जाता है ऐसी युवतियों को खास वर की प्राप्ति होती है और पति सदैव उनकी बात भी मानते हैं। कुल मिला कर ये कह सकते हैं कि घर में यदि तनाव हो भी जाए तो भी वह कुछ दिनों बाद खत्म हो जाता है, पर रिश्ते पर आंच नहीं आती है।
मान्यता के अनुसार नवदुर्गा के छठवें स्वरूप में मां कात्यायनी का जन्म कात्यायन ऋषि के घर हुआ था, अतः इनको कात्यायनी कहा जाता है। इनकी चार भुजाओं में अस्त्र शस्त्र और कमल का पुष्प है, वहीं इनका वाहन सिंह है।
देवी मां का स्वरूप: मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बांयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।
– महिलाओं के विवाह से सम्बन्ध होने के कारण इनका भी सम्बन्ध बृहस्पति से है – दाम्पत्य जीवन से सम्बन्ध होने के कारण इनका आंशिक सम्बन्ध शुक्र से भी है।
– गोधूली वेला के समय पीले अथवा लाल वस्त्र धारण करके इनकी पूजा करनी चाहिए। – इनको पीले फूल और पीला नैवेद्य अर्पित करें। इन्हें शहद अर्पित करना विशेष शुभ होता है।
शीघ्र विवाह के लिए मां कात्यायनी की पूजा का ये भी है तरीका… – गोधूलि वेला में पीले वस्त्र धारण करें। – देवी मां के समक्ष दीपक जलायें और उन्हें पीले फूल अर्पित करें।
मां दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा’ चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से मां के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
पंडित शर्मा के अनुसार देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं। इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, मां कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं। मान्यता के अनुसार देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है। भक्त को माता के पूजन द्वारा सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं। साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है।
देवी कात्यायनी जी के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार देवी कात्यायनी देवताओं, ऋषियों के संकटों को दूर करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुईं। महर्षि कात्यायन ने देवी पालन पोषण किया। जब महिषासुर नामक राक्षस का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब उसका विनाश करने के लिए ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने अपने तेज़ और प्रताप का अंश देकर देवी को उत्पन्न किया था और ॠषि कात्यायन ने भगवती जी कि कठिन तपस्या, पूजा की इसी कारण से यह देवी कात्यायनी कहलायीं।
नवरात्रों के छठे दिन मां कात्यायनी की सभी प्रकार से विधिवत पूजा अर्चना करनी चाहिए फिर मां का आशीर्वाद लेना चाहिए और साधना में बैठना चाहिए। इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कात्यायनी सभी प्रकार के भय से मुक्त करती हैं। मां कात्यायनी की भक्ति से धर्म, अर्थ, कर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है।
चंद्र हासोज्ज वलकरा शार्दूलवर वाहना।
कात्यायनी शुभंदद्या देवी दानव घातिनि।। चढावा- षष्ठी तिथि के दिन देवी के पूजन में मधु का महत्व बताया गया है। इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनें और प्रसाद में मधु यानि शहद का प्रयोग करना चाहिए।
शादरीय नवरात्र 2018 में तिथि के हिसाब से देवी की पूजा-आराधना…
11 अक्टूबर- नवरात्रि का दूसरा दिन तृतीय – चंद्रघंटा पूजा
12 अक्टूबर- नवरात्रि का तीसरा दिन – कुष्मांडा पूजा
13 अक्टूबर- नवरात्रि का चौथा दिन – स्कंदमाता पूजा
14 अक्टूबर- नवरात्रि का 5वां दिन – सरस्वती पूजा
15 अक्टूबर- नवरात्रि का छठा दिन – कात्यायनी पूजा
16 अक्टूबर- नवरात्रि का सातवां दिन – कालरात्रि, सरस्वती पूजा
17 अक्टूबर- नवरात्रि का आठवां दिन – महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
18 अक्टूबर- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
19 अक्टूबर – दुर्गा विसर्जन, विजयादशमी