कोर्ट के फैसले से कर्मचारियों के मूल वेतन में वृद्धि होगी, वहीं पेंशनर्स को पेंशन में भी लाभ होगा। याचिका पेंशनर्स वेलफेयर एसो. की ओर से दायर की गई थी। एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष आमोद सक्सेना ने बताया कि एमपी वेतन पुनरीक्षण नियम 2009 के अनुसार वेतनवृद्धि एक समान एक जुलाई से करने के कारण कर्मियों को छठे वेतनमान में 13 से 18 माह बाद वेतन वृद्धि का लाभ मिला।
याचिका में कहा गया है कि केंद्र ने छठे वेतनमान के नियम में 19 मार्च 2012 को संशोधन किया। इसके अनुसार जिसकी वेतनवृद्धि 2005 में एक जनवरी से एक जुलाई के बीच में होती थी, उन्हें पांचवें वेतनमान की एक वेतनवृद्धि देकर छठे वेतनमान में वेतन निर्धारण किया जाए। इनको 1 जुलाई 2006 से वार्षिक वेतन वृद्धि दी जाए। उत्तरप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ ने भी केंद्र सरकार के आदेश का पालन कर अपने-अपने कर्मचारियों का वेतन निर्धारण किया है, लेकिन मध्यप्रदेश में ऐसा नहीं किया।
मध्य प्रदेश के कर्मचारी एवं पेंशनर्स लगातार मांग करते रहे कि केंद्र सरकार के परिपत्र के अनुसार उनका वेतन निर्धारण किया जाए, लेकिन सरकार ने इसे दरकिनार रही। पेंशनर्स एसोसिएशन के तत्कालीन प्रांतीय उपाध्यक्ष गणेश दत्त जोशी ने 22 मार्च 2012 को ज्ञापन दिया था।
मांग दरकिनार करती रही सरकार
वित्त विभाग की नस्ती में तत्कालीन मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव वित्त एवं वित्त मंत्री का अनुमोदन भी हुआ, लेकिन आदेश जारी नहीं हुए। इस पर पेंशनर्स वेलफेयर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष सक्सेना ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की। 18 अक्टूबर को डबल बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने शासन को नोटिस जारी कर 4 सप्ताह में निर्णय लेकर एक सप्ताह के अंदर याचिकाकर्ता को निर्णय की सूचना देने का आदेश जारी किया है। सक्सेना ने बताया कि याचिका की पैरवी वरिष्ठ अधिवक्ता मेजर केसी गिल्डीयार ने की।