सात मच्छरों में मिला नया वेरिएंट जानकारी के अनुसार आइसीएमआर द्वारा रिसर्च के लिए एडीज की दोनों प्रजाती एजिप्टाई व एल्बोपिक्टस के मच्छरों को पकड़ा गया। जिसमें से 7 एल्बोपिक्टस मच्छरों में जीनोटाइप 4ए वायरस मिला है। इस वायरस के मच्छर इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, ताइवान, सिंगापुर समेत अन्य देशों अब तक देखने को मिलते थे।
नई दवा को लेकर यह था दावा
मलेरिया विभाग ने बीते साल कहा था कि जिस तरह से डेंगू के मच्छरों वाले अंडे एक साल बाद भी पानी के संपर्क में आते ही लार्वे में तबदील हो जाते हैं। इसी प्रकार इस दवा को खाली पड़े स्थान, सिमेंट टैंक, तालाब, गड्ढा, नाली, कबाड़ समेत मच्छरों के पनपने के हर संभव स्थान पर डाला जाएगा। ऐसे में पानी के संपर्क में आते ही दवा में मौजूद बैक्टीरिया एक्टिव हो जाएंगे। इन बैक्टीरिया को जैसे ही लार्वा खाएंगे। यह उनके पेट में पहुंच कर उनको खाने का काम करेगा। जिससे वह मर जाएंगे।
टीमोफॉस रहीं बेअसर मच्छरों को मारने के लिए टीमोफॉस समेत अन्य रसायनों का उपयोग साल 2009 से हो रहा है। लगातार एक ही दवा के उपयोग से अब मच्छरों पर इनका असर कम हो गया। यहीं नहीं इस दवा को अधिक मात्रा में इस्तेमाल करना पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है।
लार्वा पनपने को अनुकूल मौसम, विभाग की छुट्टी रद्द 28 और 29 अक्टूबर दो दिन की सरकारी छुट्टी मलेरिया विभाग की रद्द हो गई है। विभाग के कर्मचारियों का कहना है कि 60 फीसदी पद खाली हैं। ऐसे में पूरे शहर को कवर करने के लिए छुट्टी भी रद्द की गई हैं। वर्तमान में दिन में गर्मी तो रात में सर्दी का एहसास हो रहा है। ऐसे मौसम में लार्वा पनपने की संभावना अधिक होती है।
वर्जन
सभी टीमें लगातार फील्ड पर काम कर रहीं है। लार्वा को खत्म करने जेविक बीटीआई दवा के साथ अन्य दवाओं का छिड़काव लगातार जारी है। जेविक दवा सिर्फ इस साल नहीं बल्कि अगले कुछ सालों तक अपना काम करेगी। बार बार हुए मौसम में बदलाव के कारण भी इस साल डेंगू का ग्राफ बढ़ा है।
-अखिलेश दुबे, जिला मलेरिया अधिकारी