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भोपाल

MP: किसानों की मौत के बाद ऐसे जी रहा उनका परिवार, रुला देंगी ये कहानियां

शायद उन्होंने सोचा होगा कि उनकी मौत के बाद उनके परिवारों को सरकारी मदद मिलेगी और सब कुछ फिर से नए सिरे से शुरू हो जाएगा। पर वे नहीं जानते थे कि उनकी मौत उनके परिवार  की मुश्किलें बढ़ा भी सकती है। 

भोपालJan 05, 2017 / 01:42 pm

sanjana kumar

rice price

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भोपाल/अशोकनगर/ईसागढ़। मध्यप्रदेश के कुछ किसानों ने आत्महत्या को अपनी मुश्किलों का समाधान समझ मौत को गले लगाया। शायद उन्होंने सोचा होगा कि उनकी मौत के बाद उनके परिवारों को सरकारी मदद मिलेगी और सब कुछ फिर से नए सिरे से शुरू हो जाएगा। 

पर वे नहीं जानते थे कि उनकी मौत उनके परिवार की मुश्किलें बढ़ा भी सकती है। क्योंकि उनके परिवारों को अफसरों की तिकड़म की वजह से या तो कम मदद मिली या फिर मिली ही नहीं। सरकारी मदद की राशि को अपनी जेबों में भरने वाले अफसर उनके अपनों की जिंदगी इतनी बदतर कर देंगे कि उन्हें जानकर ही हर कोई रो देगा। किसान और उसके परिजनों का हाल जानकर आपकी आंखें भी भर आएंगी, गला रुंध जाएगा और सरकारी व्यवस्थाओं पर रोष लाजमी होगा…


मढ़ी महिदपुर गांव :मदद साहूकारों ने हड़प ली

मढ़ी महिदपुर गांव के किसान श्रीराम यादव ने कर्ज के बोझ व फसल खराब होने के कारण 3 अक्टूबर 2015 की सुबह घर के पास स्थित नीम के पेड़ से फांंसी लगा ली थी। किसान के पास महज चार बीघा जमीन थी। खरीफ की फ सल बर्बाद हो गई थी। किसान पर 2.5 लाख रुपए का कर्ज था। पीडि़त परिवार को परिवार आर्थिक सहायता योजना के तहत 20 हजार रुपए की राशि स्वीकृत की गई। पीडि़त परिवार के घर पहुंचकर सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 50 हजार और विधायक गोपाल सिंह चौहान ने भी 10 हजार रूपए की आर्थिक सहायता दी।

कर्ज के बोझ और खराब फ सल के कारण किसान ने सवा साल पहले की थी आत्महत्या,जस की तस है आर्थिक स्थिति

आर्थिक सहायता के रूप में मिली राशि का एक बड़ा हिस्सा मृतक किसान के बेटे ने साहूकारों की देनदारी में चुका दिया। इसके बाद स्थिति जस की तस हो गई। मृतक किसान के बेटे धर्मेन्द्र ने बताया कि आर्थिक स्थिति सुधरना तो दूर परिवार को खाने के ही लाले पड़े हैं। परिवार में उसकी मां के अलावा पत्नी, चार महीने की बेटी और बहन है। इस बार भी चार बीघा में महज 50 किलो उड़द ही निकले। जिससे रबी फसल की बुवाई की व्यवस्था भी नहीं हो सकी। साहूकारों के आगे खाद-बीज के लिए हाथ फैलाए तब कहीं जाकर चने की फसल बोई जा सकी। धर्मेन्द्र ने बताया कि पिता की चिंता अब उसकी चिंता बन चुकी है। 


विदिशा: प्रशासन भूल गया रास्ता

सोयाबीन की फसल खराब होने और कर्ज होने से परेशान मुरवास थाने के ग्राम अलीनगर के किसान हीरालाल अहिरवार ने 25 अक्टूबर 2015 को जहर खाकर जान दे दी थी। जब किसान की आत्महत्या की खबर चर्चा में आई तो तहसीलदार बयान लेने गांव जा पहुंचे थे। इसके बाद कोई गांव में पीडि़त परिवार की हालत देखने तक नहीं आया। मृतक हीरालाल के पुत्र 32 वर्षीय समुन्दर सिंह बताते हैं कि पिता की मौत के बाद सरकार की तरफ से एक धेले की मदद भी नहीं मिली। पिता का 52 हजार रुपए कर्ज था, जिसे बेटों को पटाना पड़े रहा है, लेकिन मजदूरी के पैसों से वह भी संभव नहीं है। समुन्दर के पास 7 बीघा जमीन है, उसी से परिवार चल रहा है।

मुरवास के ग्राम अलीनगर में हीरालाल अहिरवार के पुत्र समुंदर सिंह अपने परिवार सहित। 

जिससे वे जैसे तैसे अपने परिवार का पालन करते हैं। समुन्दर का कहना है कि सोयाबीन की फसल खराब होने के कारण पिताजी ने जहर खा लिया था। उन्होंने यही कहा था कि कर्ज मैंने लिया था, लेकिन अब मेरे बस का नहीं उसे पटा पाना, इसलिए अब ये कर्ज भी तू ही पटाना। 


बड़वानी : नाजुक कंधों पर घर का बोझ

कर्ज से परेशान पिता की आत्महत्या करने के बाद परिवार का बोझ नाजुक कांधों पर आ गया है। घर के मुखिया की मौत के बाद पूरा परिवारसदमे में है, लेकिन बेटा दादी, मां और छोटे भाई के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है। खेत में काम करने के बाद इसे समय मिलता है तो घर का खर्च चलाने के लिए बेटा मजदूरी भी करने जाता है। पिता की मौत के बाद छोटी उम्र में परिवार का पूरा बोझ दीपक पर ही आ गया है। 

समीपस्थ ग्राम भीलखेड़ा में कर्ज से परेशान किसान कृष्णा पिता गोविंद ने 5 नवंबर को सुसाइड नोट लिख फांसी के फंदे पर झूल गया था। परिवार के मुखिया की मौत हो जाने के बाद किसान के बेटे ने अपने पिता की जगह ले ली। अब खेत का पूरा काम 17 वर्षीय दीपक ही संभाल रहा है। 15 वर्षीय छोटा भाई सूरज भी मदद करता है। अपने भाई की मदद के लिए हमेशा तैयार रहता है। ये दोनों भाई मिलकर खेत का काम करते हैं। इनके साथ मां भी खेती के कार्य में मदद करती है। 

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किसान की मौत के बाद बेटा खेती और मजदूरी कर चला रहा घर।

अब तक नहीं मिली सहायता
किसान की 80 वर्षीय वृद्ध मां सोनाबाई व पत्नी सयानीबाई ने बताया कि राष्ट्रीय परिवार सहायता की राशि देने का अधिकारियों ने कहा था। दो महीने बाद भी 20 हजार रुपए की राशि नहीं मिली है। इसके लिए बैंक भी गए थे, लेकिन वहां भी राशि नहीं आई है। वृद्ध मां का कहना था कि पिछले तीन-चार साल से फसलें खराब हो रही हैं। बेटे के जाने के बाद घर की हालत भी खराब हो गई है। ढाई एकड़ खेत में परिवार चलाना बहुत ही मुश्किल है। 

दीपक ने बताया कि इस साल कपास की फसल भी खराब हो गई है। अभी खेत में गेहूं की फसल बो रखी है। उसमें पानी देने का समय आ गया और अब कुएं की मोटर खराब हो गई है। इसे ठीक कराने में भी खर्च आएगा। खेती से घर का खर्च नहीं निकलता है, इसलिए मजदूरी पर भी जाना पड़ता है। 

बैंक से नोटिस मिलने के बाद दी थी जान
5 नवंबर 2016 को आत्महत्या करने वाले भीलखेड़ा को 4 अप्रैल और 3 अक्टूबर को नोटिस मिले थे। किसान ने नर्मदा मालवा ग्रामीण बैंक से 25 मार्च 2015 को 80 हजार रुपए का लोन लिया था। अक्टूबर में मिले नोटिस में किसान को ब्याज सहित 1.8 लाख रुपए भरने की सूचना मिली। नोटिस मिलने के बाद से ही किसान परेशान रहने लगा। वहीं फसल खराब होने के बाद रुपयों के इंतजाम भी नहीं कर पा रहा था। रुपयों की इंतजाम नहीं होने व दूसरी बार नोटिस मिलने के बाद किसान ने अपनी जान दे दी। 

सीहोर : बेटा-बहू पर कर्ज का फंदा

फसल की बर्बादी के आगे हार मान चुके किसान बालमुकुंद ने डेढ़ साल पहले मौत को गले लगा लिया था। मृतक किसान का परिवार भी कर्ज के दलदल से बाहर नहीं निकल सका है। पिता के 80 हजार रुपए का कर्ज चुकाने उसके बेटे और बहू दोनों मजदूरी कर रहे हैं। 

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जिला मुख्यालय से करीब आठ किमी दूर मुंगावली में किसान बालमुकुंद ने 28 अप्रैल 2015 की रात फसल खराब होने पर आत्महत्या कर ली थी। उसे सोसायटी का 50 हजार रुपए सहित अन्य लोगों का करीब 80 हजार रुपए चुकाना था। लीलाकिशन बताता है कि उसके पिता की मौत को डेढ़ साल हो गया है। पट्टे की पांच एकड़ जमीन में इस साल भी कुछ नहीं निकला है। पिता का कर्ज अभी भी उनके सिर चढ़ा है।
 
सोसायटी वाले कर्ज का तकाजा लगाते हैं, लेकिन रुपया हो तो दें। कर्ज चुकाने के लिए वह और उसकी पत्नी अनिता मजदूरी कर रहे हैं। मजदूरी से ही उनके तीन बच्चों अरविंद, अखिलेश, मंजु का पेट पाल रहे हैं। ग्राम पंचायत के सरंपच प्रतिनिधि संतोष विश्वकर्माने बताया कि आज भी लीला किशन का परिवार आज भी फांके की स्थिति में है। 

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