नाटक की शुरुआत में दिखाया गया कि अशोक बिन्दुसार का पुत्र था। उनकी मां उपेक्षित थी। इस पुत्र के जन्म से वह स्वीकार्य हुई। इसलिए पुत्र का नाम अशोक रखा। जन्म के समय से ही अशोक काफी कुरूप, लेकिन वीर था। पिता ने उसे पश्तून(पठान) विद्रोहियों के दमन के लिए भेजा। वहां मिली सफलता के बाद वह उज्जयिनी का शासन बना दिया गया। बिन्दुसार से उसने राज्याधिकार प्राप्त किया था। उस आघात में बिन्दुसार की मौत हो गई। राज-सिंहासन के लिए उसकी लड़ाई बड़े भाई सुसीम के साथ हुई थी। डायरेक्टर के अनुसार भाई की हत्या कर उसने सत्ता हथियाई थी, इसलिए उसे पितृहन्ता और भ्रातहन्ता के साथ चंडाशोक भी कहा गया।
डायरेक्टर के अनुसार नाटक में दिखाया गया कि अशोक पहले बौद्ध मत के विरूद्ध था, लेकिन कारागार में बंद एक बौद्ध भिक्षु के चमत्कारों से प्रभावित होकर वह बौद्धधर्म से दीक्षित हो गया। उसका धर्म परिवर्तन कलिंग युद्ध के पहले ही हो चुका था। अशोक के अंतपुर में 500 स्त्रियां थीं। जो स्त्रियां उसकी कुरूपता से क्षुब्ध होती थी, वह क्रूरतापूर्वक जला देता था। कुरूपता के कारण उसने अपना नाम प्रियदर्शी भी रखा था। डायरेक्टर का कहना है कि नाटक के माध्यम से हम यह बताने चाहते हैं कि अशोक न देवता है न दानव। वह मनुष्य है। वह अपने कार्यों से महान हुआ।
1. मृत्यू का यदि भय नहीं तो तुम्हारे हाथ में खडग नहीं होता, क्लीवों का पुरुषों की तरह सिर मुड़ाकर भीख मांगकर भोजन न कर रहे होते। 2. चिंटी अल्प ज्ञानी होती है वो अपने असहाय जीवन को सब कुछ समझकर जीवन से छिपके रहना चाहती है। हम सब भी तो जीवन से अंतिम समय तक चिपके रहते हैं।