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कानून के तहत होगी केस वापसी
बता दें कि, भाजपा के कई नेता-कार्यकर्ताओं ने सरकार के समक्ष ये शिकायत रखी थी कि, कांग्रेस सरकार में उनके खिलाफ झूठे प्रकरण दर्ज किए गए। यह सब मामले राजनीति से प्रेरित होकर दर्ज हुए हैं। शिकायत करने वालों में बीजेपी के सांसद, विधायक से लेकर मंत्री तक शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक, इस शिकायत को सरकार ने गंभीरता से लेते हुए गृह विभाग को इस संबंध में वैधानिक कार्रवाई करने के निर्देश दिए थे। गृह विभाग ने भी तुरंत ही मामलों की जानकारी जुटाने के निर्देंश पुलिस मुख्यालय को दिए हैं। मुख्यालय जानकारी जुटाने के लिए सभी जिलों के एसपी की मदद ले रहा है। प्रदेश के सभी एसपी से ऐसे मामलों की जानकारी मांगी गई है। केस वापस लेने की प्रक्रिया प्रत्याहरण कानून के तहत की जाएगी।
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इस प्रक्रिया से वापस होंगे केस
-केस वापस लेने की जानकारी और उससे जुड़ा प्रस्ताव कोई भी लोकसेवक, जांच अधिकारी, लोक अभियोजक या फिर शिकायतकर्ता अभियोजन संचालनालय को भेज सकता है।
-मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, जनप्रतिनिधि या कलेक्टर भी केस वापस लेने के लिए आवेदन दे सकते हैं। इन आवेदनों को जिला स्तर पर गठित आपराधिक प्रकरणों की समिति को भेजा जाता है। इस समिति का अध्यक्ष कलेक्टर और सचिव अभियोजन अधिकारी और सदस्य संबंधित एसपी, डीआईजी होता है। समिति केस वापस लेने की सिफारिश अभियोजन संचालनालय को भेजती है।
-जिले की तरह ही राज्य स्तर पर भी एक समिति होती है, जो जिला स्तरीय समिति की निगरानी करती है। इसमें गृह विभाग के एसीएस, विधि विभाग के पीएस, डीजीपी, महाधिवक्ता या उनकी ओर से कोई नामांकित प्रतिनिधि और संचालक लोक अभियोजन सदस्य होते हैं। अभियोजन संचालनालय इन केसों को परीक्षण के लिए विधि विभाग को भेजता है।
-विधि विभाग गुण-दोष के आधार पर इन केसों का परीक्षण कर इन्हें वापस लेने या बनाए रखने की सिफारिश करते हुए अभियोजन संचालनालय को अपना मत देता है।
-जिले के अभियोजन अधिकारी के माध्यम से अदालत को केस वापस लेने की आधिकारिक सूचना दी जाती है। इसके बाद अंतिम फैसला कोर्ट लेता है। कोर्ट पर निर्भर रहता है कि केस वापस करने या नहीं।