बुदनी से रेहटी की तरफ जाते समय एक रास्ता यार नगर के लिए जाता है। यह इलाका रातापानी अभ्यारण से लगा है। इसी रास्ते से गिन्नौरगढ़ किले के पीछे वाले में पहुंचा जा सकता है। चारों ओर से जंगलों और बाघों से घिरने रहने वाले इस इलाके से भोपाल रियासत के नवाब को भी लगाव था।
एक गोली से हो जाता था काम
बुदनी से पांच किलोमीटर दूर खांडागढ़ ग्राम पंचायत से अंदर घने जंगलों में पक्का पारचा गांव में आज भी बाघ के शिकार के निशान मौजूद हैं। यहां नवाब की ओर से तैयार मचान और पत्थर का घूंटा आज भी सही सलामत है। गांव के बुजुर्क मो. आरिफ बताते हैं कि नवाब हमीदुल्ला खां यहां अक्सर आया करते थे। बाघ के शिकार के लिए नदी के किनारे बड़े से पत्थर को काटकर खूंटा बनाया गया था। इससे करीब 200 फीट दूर पत्थर की मचान तैयार की गई, जिस पर बैठकर नवाब एक गोली में बाघ का काम तमाम कर देते थे।
आज भी नहीं हिलता खूंटा
शिकार के लिए जिस खूंटे से बोदा (भैंसा) को बांधा जाता था वो इतना बड़ा है कि आज भी इसे हिलाना मुश्किल है। मो. आरिफ कहते हैं कि उनके पिता ने बताया कि इस खूंटे को बड़े से पत्थर को तराशकर बनाया गया था। उस समय यह इतना बड़ा था कि हाथी से खींचकर लाना पड़ा था। बाघ जैसे ही भैंसे पर हमला करता, तब मचान पर बैठे नवाब उसका शिकार कर लेते थे।