राजधानी में वार्ड स्तर और चिकित्सालयों में कार्ड बनाए जा रहे हैं। गैस पीडि़तों को विशेष रूप से इससे जोड़ा है। इंदिरा गांधी अस्पताल, जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय कमला नेहरू में यह कार्ड बनाए जा रहे हैं। हर रोज कार्ड बनने की संख्या इतनी कम है कि हजारों लोग अभी कार्ड बनवाने के लिए कतार में हैं। जानकारी के मुताबिक निजी अस्पतालों में जा रहे गैस पीडि़तों को इलाज का खर्च देना पड़ रहा है। कार्ड बनने की घोषणा को एक साल बीत जाने के बाद भी हजारों लोग इससे वंचित हैं। छोला निवासी मातादीन गंभीर रूप से बीमार हो गए। गैस राहत अस्पताल में इलाज की कमी देख परिजन निजी अस्पताल में इलाज के लिए ले गए। यहां पर इन्हें हजारों रुपए इलाज का खर्च देना पड़ा। इनके पास गैस राहत विभाग का कार्ड और सभी दस्तावेज है। आयुष्मान न बन पाने से यह स्थिति बनी।
मिनी यूनिट, डिस्पेंसरी और बाकी अस्पतालों में शिविर लगाने की मांग: गैस राहत के शहर में सात बड़े अस्पताल हैं। आठ मिनी यूनिट है। रोजाना करीब पांच हजार मरीज यहां इलाज पाने के लिए पहुंचते हैं। कार्ड बनाने में तेजी लाने के लिए इन सभी जगहों पर कर्मचारियों की तैनाती की मांग की जा रही है। अगर ऐसा होता है तो जल्द इन्हें बनाया जा सकेगा। गैस पीडि़तों को इसका फायदा मिलेगा।
कार्ड बनाने के लिए प्रक्रिया चल रही है। इसके लिए गैस राहत अस्पतालों के साथ ही नगर निगम के वार्ड कार्यालय पर भी काम हो रहा है। यहां भी गैस पीडि़त कार्ड बनवा सकते हैं।
सत्येन्द्र राजपूत, सीएमओ गैस राहत अस्पताल
अधिकांश गैस पीडि़त अस्पतालों में चिकित्सा सुविधाओं की कमी है। मरीजों को मजबूर होकर निजी अस्पतालों की शरण लेनी पड़ती है। यहां इनके गैस राहत के कार्ड काम नहीं आ रहे हैं। निजी अस्पतालों में मुफ्त इलाज के लिए साल पहले घोषणा हुई थी। हजारों लोगों के कार्ड नहीं बन पाए।
बाल कृष्ण नामदेव, एक्टिविट गैस पीडि़त निराश्रित पेंशन भोगी
संघर्ष मोर्चा