मैं थिएटर का आदमी हूं, काम करने पर विश्वास करता हूं
रघुबीर ने कहा कि मैं थिएटर का आदमी हूं, काम करने पर विश्वास करता हूं। सिनेमा को कमर्शियल और आर्ट सिनेमा में बांटा गया, मैं मानता हूं या तो सिनेमा बुरा होता है या अच्छा। इसके सिवा कोई ऑप्शन नहीं। उन्होंने कहा कि मैं स्टारडम पर विश्वास नहीं करता। सड़क पर जाकर लोगों से मिलता हूं, यही तो असली हिंदुस्तान है, हमारे संस्कार है। मेरा मानना है कि फिल्म बायकॉट जैसा कुछ नहीं होता। फिल्म अच्छी नहीं बनेगी तो कौन देखेगा।
हमारे साहित्य में हजारों कहानियां
रघुबीर ने कहा कि आज के एक्टर, डायरेक्टर, राइटर के यही दिक्कत है। वे इंटरनेट पर तो खूब सर्च करते हैं, लेकिन लोगों के बीच नहीं जाते, इसलिए कहानी में आत्मा तो होती ही नहीं। मैं जब भी फ्री होता हूं खूब किताबें पढ़ता हूं। जब आप पढ़ोगे नहीं तो लिखोगे क्या, इधर-उधर की कहानियां जोड़कर फिल्म बनाएंगे तो वह फ्लॉप ही होगी। हमारे देश में इतना साहित्य है कि यदि उसे पढ़कर कहानी बनाई जाए, तो हजारों नई फिल्में होंगी। फिर साउथ या हॉलीवुड की कॉपी करने की जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि मैं कभी ऐसी वेबसीरीज या फिल्म नहीं करता जिसमें अपशब्द या अश्लीलता हो, जो मैं खुद परिवार के साथ नहीं देख सकता, उसे दूसरों को देखने को कैसे कहूंगा।
मैं कभी रोमन स्क्रिप्ट नहीं पढ़ता
उन्होंने कहा कि हिंदी सिनेमा में अधिकांश एक्टर रोमन में स्कि्रप्ट मांगते हैं। मैं हिंदी भाषी आदमी हूं। हिंदी स्क्रिप्ट ही मांगता हूं, यदि कोई रोमन में देता भी है तो उसे खुद हिंदी में लिखकर डायलॉग याद करता हूं। यदि भाषा का ट्रांसलेशन कर दोगे तो उसकी आत्मा ही मर जाएगी।