हाथ लग जाए खजाना
संगम पर विसर्जित अस्थियों में सोने व चांदी के जेवरात, सिक्के या दिवंगतों की प्रिय वस्तु रखी जाती है। एेसे में यहां कुछ परिवार डेरा डाले हुए हैं। ये लोग संगम के पानी में लोहे की छलनी व कपड़े का जाल लेकर उतर जाते हैं और यहां प्रवाहित की गई अस्थियों को छानते हैं। रोजाना पांच से छह घंटे इसी काम में लगे रहते हैं। भरी सर्दी में भी ठंडे पानी में डुबकी लगाते हैं। अस्थियों में चांदी की अगूंठी, सिक्के, पायेजब, चेन या सोने के गहने भी मिल जाते हैं। कई बार वर्षों पूर्व दिवगंत हुए लोगों के तर्पण में अस्थियां (फूल) उपलब्ध नहीं होने पर चांदी के फूल बनवाकर विसर्जित किए जाते हैं। यहां लगे परिवार इन सबसे गुजारा करते हैं। कई बार दिनभर अस्थियों का पानी छानने के बाद भी खाली रहना पड़ता है।
1400 वर्ष पूर्व शिवलिंग का उद्भव, ७५ साल पुराना मंदिर
त्रिवेणी संगम स्थित शिवमंदिर के पुजारी रामपुरी बताते हैं कि मंदिर करीब ७५ वर्ष पुराना है, लेकिन कहा जाता है कि संगम स्थल पर करीब 1400 वर्ष पूर्व शिवलिंग का उद्भव हुआ था। यह स्थल लोगों की आस्था का केन्द्र है। यहां धाकड़ समाज के सहयोग से शिव मंदिर का निर्माण हुआ। त्रिवेणी संगम पर दिवंगतों की अस्थियां प्रवाहित करने की पुख्ता व्यवस्था है। कुछ लोग यहां पानी में विसर्जित अस्थियों व राख में जेवरात व धातु के टुकड़े तलाशते हैं। मंदिर प्रबंधन की ओर से संगम स्थल की सफाई के लिए कर्मचारी रखे हुए हैं।