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भीलवाड़ा

अजब-गजब: राजस्थान के इस गांव में सुबह 9 बजे दिखता है सूरज, शाम 4 बजे हो जाता है अस्त; जानें क्यों?

Unique Village Rajasthan: पहाड़ों की गोद में बसे इस गांव में सुबह नौ बजे सूर्यादय होता और शाम 4 बजे अस्त।

भीलवाड़ाDec 02, 2024 / 03:20 pm

Alfiya Khan

प्रभुलाल सोमानी
Bhilwara News: बरूंदनी कहने और सुनने में यह बड़ा ही अजीब लगता है लेकिन है यह सत्य। राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में मांडलगढ़ उपखण्ड की सिंगोली ग्राम पंचायत क्षेत्र में ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों की गोद में बसा है एक गांव कालीखोल जहां शीत ऋतु में सूर्यदेव के दर्शन प्रातः 9 बजे के बाद होते है और सायं 4 बजे बाद सूर्यदेव पहाड़ों की ओट में छिप जाते है। शीत ऋतु के अतिरिक्त काली खोल में सूर्यदेव प्रातः8 बजे से सायं 5 बजे तक ग्रामीणों को दिखाई देते है। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण क्षेत्र की छटा बरबस आकर्षित है।

कालीखोह से हुआ कालीखोल

सिंगोली ग्राम पंचायत क्षेत्र के काली खोल गांव जाने के लिए मेवाड़ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरि हर धाम सिंगोली चारभुजा के मन्दिर से दक्षिणी छोर से सड़क जाती है। सिंगोली काली खोल सड़क मार्ग पर दोनो ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ है। सात से आठ किमी की दूरी में चार जगह अलग अलग बस्ती है । मीणों की झोंपड़ियाँ, मोड़ा बा की झोंपड़िया,बिचली काली खोल और कालीखोल। पहले इसे कालीखोह के नाम से जाना जाता था बाद में काली खोल हो गया।

मोबाइल नहीं करता काम, पहाड़ पर चढ़कर करते बात

पहाड़ी से कालीखोल घिरा होने से यहां मोबाइल काम नहीं कर पाता है। मोबाइल सेवा के लिए बीएसएनएल ने एक वर्ष पहले टावर लगाया लेकिन सेवाएं शुरू नहीं हो सकती। इससे ग्रामीण परेशान है। पहाड़ी या पेड़ पर चढ़ने के बाद बात हो पाती है। पेयजल का भी संकट है।

देर से दिनचर्या, शाम को जल्दी लौटते

पहाड़ों के बीच गांव बसा होने से यहां की दिनचर्या सुबह देरी से शुरू होती है। सुबह आठ से नौ बजे के बीच सूर्यादय होने पर ग्रामीण पशुओं को लेकर चराने निकलते है। खेतों में भी इसी समय जाया जाता है। शाम को सूर्यास्त जल्दी होने से ग्रामीण शाम चार बजे तक घर लौट आते है। मवेशी भी जहां होते शाम तक इसी समय बाड़े में पहुंच जाते है। मजदूरी और खेती का समय महज सात से आठ घंटे का रहता है। इससे ग्रामीण विकास का पायदान नहीं चढ़ पा रहे। पहाड़ी क्षेत्र होने से यातायात के भी पर्याप्त साधन नहीं है।

इनका कहना है

कालीखोल पहाड़ियों के बीच बसा है। यहां का जीवन कष्टदायी है। यहां की दिनचर्या अलग है। सूर्यादय देरी होने से दिनचर्या भी देरी से शुरू होती है। जल्दी सूर्यास्त होने से ग्रामीण जल्दी गांव में लौट आते है।
राकेश कुमार आर्य, ग्रामीण

आर्थिक रूप से गांव समृद्ध नहीं

आर्थिक रूप से गांव समृद्ध नहीं है। कामकाज का समय ग्रामीणों को सात से आठ घंटे ही मिल पाता है। यातायात के पर्याप्त साधन नहीं है। – प्रदीप कुमार सिंह, पूर्व विधायक मांडलगढ़

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