कालीखोह से हुआ कालीखोल
सिंगोली ग्राम पंचायत क्षेत्र के काली खोल गांव जाने के लिए मेवाड़ के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हरि हर धाम सिंगोली चारभुजा के मन्दिर से दक्षिणी छोर से सड़क जाती है। सिंगोली काली खोल सड़क मार्ग पर दोनो ओर ऊंचे ऊंचे पहाड़ है। सात से आठ किमी की दूरी में चार जगह अलग अलग बस्ती है । मीणों की झोंपड़ियाँ, मोड़ा बा की झोंपड़िया,बिचली काली खोल और कालीखोल। पहले इसे कालीखोह के नाम से जाना जाता था बाद में काली खोल हो गया।मोबाइल नहीं करता काम, पहाड़ पर चढ़कर करते बात
पहाड़ी से कालीखोल घिरा होने से यहां मोबाइल काम नहीं कर पाता है। मोबाइल सेवा के लिए बीएसएनएल ने एक वर्ष पहले टावर लगाया लेकिन सेवाएं शुरू नहीं हो सकती। इससे ग्रामीण परेशान है। पहाड़ी या पेड़ पर चढ़ने के बाद बात हो पाती है। पेयजल का भी संकट है।देर से दिनचर्या, शाम को जल्दी लौटते
पहाड़ों के बीच गांव बसा होने से यहां की दिनचर्या सुबह देरी से शुरू होती है। सुबह आठ से नौ बजे के बीच सूर्यादय होने पर ग्रामीण पशुओं को लेकर चराने निकलते है। खेतों में भी इसी समय जाया जाता है। शाम को सूर्यास्त जल्दी होने से ग्रामीण शाम चार बजे तक घर लौट आते है। मवेशी भी जहां होते शाम तक इसी समय बाड़े में पहुंच जाते है। मजदूरी और खेती का समय महज सात से आठ घंटे का रहता है। इससे ग्रामीण विकास का पायदान नहीं चढ़ पा रहे। पहाड़ी क्षेत्र होने से यातायात के भी पर्याप्त साधन नहीं है।इनका कहना है
कालीखोल पहाड़ियों के बीच बसा है। यहां का जीवन कष्टदायी है। यहां की दिनचर्या अलग है। सूर्यादय देरी होने से दिनचर्या भी देरी से शुरू होती है। जल्दी सूर्यास्त होने से ग्रामीण जल्दी गांव में लौट आते है।–राकेश कुमार आर्य, ग्रामीण