Hindi Diwas 2024: हिन्दी का पहला फैंटेसी उपन्यास, छत्तीसगढ़ में लिखी गई पहली मौलिक कहानी…
Hindi Diwas 2024: खैरागढ़ के चारण कवि दलपतराम ने अपनी कविता में छत्तीसगढ़ शब्द का उल्लेख कर हिंदी कविता को छत्तीसगढ़ से परिचय कराया। तब से लेकर रतनपुर के कवि गोपाल मिश्र की खूबतमाशा और माखन मिश्र, बाबू रेवाराम जैसे अनेक प्रारंभिक कवियों ने छत्तीसगढ़ से हिंदी के विकास की गति में अपनी भूमिका का निर्वाह किया था।
Hindi Diwas 2024: हिंदी भाषा और साहित्य का हजार साल से अधिक के क्रमिक किंतु सतत विकास का इतिहास ग्रंथों में मौजूद है। हिंदी साहित्य के इतिहास लेखन की विसंगतियों पर जब अध्ययन किया जाता है तब छत्तीसगढ़ के प्रदेय को भुला देने अथवा उपेक्षित करने का आरोप समीक्षकों पर लगता है। लेकिन जब हिंदी के विकास की यात्रा को देखते-पढ़ते हैं तो पता चलता है कि प्रत्येक युग में छत्तीसगढ़ ने हिंदी के पौधे को सींचा है, उसे वृक्ष और अब महावृक्ष में तब्दील करने में भी छत्तीसगढ़ ने बड़ी भूमिका अदा की है। हिंदी की अनेक आरंभिक चीजें छत्तीसगढ़ की देन हैं।
यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2024: इस देश में हिंदी लोगों को दे रही रोजगार, कई विश्वविद्यालयों में शोध कार्य… हिंदी के सफर विशेषकर हिंदी के गद्य के विकास के प्रथम पड़ाव को फिर से खंगालते हैं तो अनेक ऐसे प्रामाणिक ग्रंथ और लेखक हैं, जिन्होंने हिंदी को यहां तक पहुंचाने में बड़ी भूमिका अदा की है। 1487 में खैरागढ़ के चारण कवि दलपतराम ने अपनी कविता में छत्तीसगढ़ शब्द का उल्लेख कर हिंदी कविता को छत्तीसगढ़ से परिचय कराया। तब से लेकर रतनपुर के कवि गोपाल मिश्र की खूबतमाशा और माखन मिश्र, बाबू रेवाराम जैसे अनेक प्रारंभिक कवियों ने छत्तीसगढ़ से हिंदी के विकास की गति में अपनी भूमिका का निर्वाह किया था। कुछ ऐसे बड़े काम हुए जिनमें हिंदी साहित्य में छत्तीसगढ़ की बड़ी ख्याति है। हिंदी भाषा का विकास भी इसी क्रम में होता गया।
जब भी हिंदी के आरंभिक मौलिक उपन्यासों की चर्चा होती है, तब छत्तीसगढ़ का लेखन जगमगा उठता है। शिवरीनारायण के तहसीलदार ठाकुर जगन्मोहन सिंह का उपन्यास श्यामा स्वप्न जिसका प्रकाशन 1888 में हुआ था, इसे समीक्षकों ने हिंदी का पहला फैंटेसी उपन्यास माना था। समीक्षक अश्विनी केशरवानी तो मानते हैं कि यह 1884 के आसपास लिखा जा चुका था। इसके प्रामाणिक संस्करण का प्रकाशन नागरी प्रचारिणी सभा ने किया है और इसकी भूमिका में ठाकुर जगन्मोहन सिंह ने रायपुर का उल्लेख भी किया है। अपने समय में यह उपन्यास सर्वाधिक चर्चित रहा है।
हिंदी कहानी के आरंभ की चर्चा होती है तो आज भी अनेक समीक्षक और आलोचक पं माधवराव सप्रे की पेंड्रा में लिखी गई कहानी एक टोकरी भर मिट्टी को हिंदी की पहली मौलिक कहानी मानते हैं। इस का श्रेय छत्तीसगढ़ के आलोचक डॉ. देवीप्रसाद वर्मा को जाता है। उन्होंने सारिका जैसी पत्रिका में लगातार बहस चलाकर इसकी स्थापना की। कथा साहित्य के वरिष्ठ आलोचक डॉ. गोपाल राय ने इस कहानी को संवेदना के क्षण की अभिव्यक्ति की दृष्टि से हिन्दी की पहली कहानी के रूप में मान्यता देते हुए इसकी भाषा को ठेठ देशी हिन्दी भाषा बताया है।
वैसे इससे पहले भी सप्रे जी की सुभाषित रत्न कहानी छत्तीसगढ़ मित्र में प्रकाशित हो चुकी थी। इस तरह छत्तीसगढ़ की उर्वरा भूमि ने हिंदी को उसकी पहली मौलिक कहानी दी है। हिंदी भाषा को व्याकरणिक, पारिभाषिक और राजभाषा के रूप में छत्तीसगढ़ ने ही स्थापित किया है। पं. सप्रे ने महावीर प्रसाद द्विवेदी के कहने पर सम्पत्तिशास्त्र नामक शब्दकोश तैयार किया और पं. कामताप्रसाद गुरु ने हिंदी का पहला व्याकरण जब लिखा तब वे छत्तीसगढ़ में पदस्थ रहे। इसी प्रकार पं रविशंकर शुक्ल और घनश्यामसिंह गुप्त ने संविधान में हिंदी की स्थिति को मजबूत किया और वे और उनके अन्य साथी संविधान सभा के सदस्य भी रहे।
इसी क्रम में पं. मुकुटधर पाण्डेय का नाम हिंदी के विकास में बड़े ही सम्मानजनक ढंग से लिया जाता है। उन्हें छायावाद के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। दरअसल छायावाद विधा को छायावाद नाम उन्होंने ही दिया है। जबलपुर की पत्रिका श्री शारदा में हिंदी में छायावाद नाम से चार निबंध 1920 में प्रकाशित हुए। इन निबंधों ने तत्कालीन समय में हलचल मचा दी और उनकी एक कविता कुररी के प्रति ने छायावाद की प्रथम कविता के रूप में लोकप्रियता प्राप्त की। कवि पाण्डेय का पूरा परिवार साहित्यिक था और पीढ़ी-दर-पीढ़ी इस परंपरा को जीवित रखा गया। बड़े भाई लोचन प्रसाद पाण्डेय प्रसि़द्ध पुरातत्ववेत्ता तथा इतिहासकार और कवि भी थे।
इसी परिवार के शुकलाल प्रसाद पाण्डेय ने 1818 में शेक्सपियर के नाटक कामेडी ऑफ एरर का छत्तीसगढ़ी भूल-भूलैया के रूप पद्यानुवाद किया। संभवत: इस कृति का किसी लोकभाषा में किया गया यह पहला पद्यानुवाद था। चिंतक और लेखक डॉ. राहुल सिंह इसे छत्तीसगढ़ी की प्रथम अनूदित रचना भी मानते हैं। हिंदी की छत्तीसगढ़ की दी गई अनुपम भेंट में जनवरी 1900 में प्रकाशित पहली पत्रिका छत्तीसगढ़ मित्र है। इस पत्रिका को अनेक समीक्षक हिंदी समालोचना का प्रारंभ मानते हैं और इससे बढ़कर पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी का तीन बार हिंदी की सबसे बड़ी पत्रिका सरस्वती का संपादन कुशलतापूर्वक किया जाना महत्वपूर्ण है।
सरस्वती में उनकी कहानी सोना निकालने वाली चींटियां इतनी अधिक लोकप्रिय हुई कि पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उन्हें 1920 में सरस्वती का युवा संपादक नियुक्त किया। वे अलग-अलग कालखंड में तीन बार सरस्वती के संपादक रहे। इसी तरह छंदशास्त्र को अकादमिक स्तर पर उंचाई देने का काम बिलासपुर के जगन्नाथ प्रसाद भानु ने किया और उनकी पुस्तक छंद प्रभाकर ने छत्तीसगढ़ को ख्याति दिलाई। वरिष्ठ समीक्षक डॉ. सुशील त्रिवेदी ने उन पर गहन शोध किया है। आज के आधुनिक हिंदी साहित्य युग में भी भारत के श्रेष्ठ साहित्यकारों में कवि-कथाकार विनोदकुमार शुक्ल की गिनती होती है। उन्हें साहित्य अकादमी ने महत्तर सदस्यता सम्मान प्रदान की है जो छत्तीसगढ़ में पहली बार दिया गया है। दरअसल छत्तीसगढ़ ने हिंदी साहित्य को भरपूर सींचा ही और उसे दिया ही दिया है। .
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