पहले डॉक्टर्स-डे पर हुई थी किरकिरी शनिवार को रिश्वत लेते पकड़े गए चिकित्सक अनिल पहले भी एसीबी के हत्थे चढ़ चुके हैं। इससे पूर्व सात साल पहले भी इसी चिकित्सक को रिश्वत लेते एसीबी की टीम ने रंगे हाथ पकड़ा था। एसीबी ने एक जुलाई 2014 को डॉ. गुप्ता को एक परिवादी से ऑपरेशन करने के बदले 1500 रुपए रिश्वत लेते गिरफ्तार किया था।
गिड़गिड़ाए और बोले मैं शर्मिंदा हूं एसीबी की ओर से रिश्वत लेते पकड़े जाने पर डॉ. गुप्ता टीम के सामने गिड़गिड़ाते नजर आए। मीडियाकर्मियों के पहुंचने पर वह मुंह छिपाने लगे। एसीबी की गिरफ्त में आने पर चिकित्सक रो पड़े और बोले कि मैं शर्मिंदा हूं। इस दौरान उन्होंने एसीबी टीम के हाथ भी जोड़े। इस पर टीम के कर्मचारियों ने उन्हें शंात करते हुए पानी पिलाया।
पिछले माह पकड़ा गया था संविदाकर्मी जनाना अस्पताल में जुलाई माह में एक संविदाकर्मी को एसीबी ने पांच हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों गिरफ्तार किया था। संविदाकर्मी सहदेव डॉ. सुनील मीणा के लिए 5 हजार रुपए की रिश्वत ले रहा था। कार्रवाई की भनक लगने पर डॉ. सुनील मीणा अस्पताल से फरार हो गया था, जो अब तक हत्थे नहीं चढ़ा है। इस मामले को लेकर परिवादी यादराम ने शिकायत की थी कि उसकी पत्नी चमेली की तबियत खराब थी, जिसे 7 जुलाई को जनाना अस्पताल में भर्ती कराया था। उसका इलाज डॉ. सुनील मीणा कर रहा था। चिकित्सक ने चमेली के पति को बच्चे दानी का ऑपरेशन करने के एवज में परिवादी से 6 हजार रुपए की मांग की थी। यह सौदा 5 हजार रुपए में तय हुआ। यह राशि चिकित्सक ने खुद नहीं लेकर संविदाकर्मी को भेज दिया। इस दौरान एसीबी ने चिकित्सक के सहयोगी संविदाकर्मी सहदेव को गिरफ्तार किया था।
सिस्टम को लग चुकी जंग एक ही डॉक्टर का लालच इतना बढ़ गया कि एक बार पकड़े जाने के बाद भी उसे भय नहीं था। मतलब साफ है कि उसे रिश्वत का खेल ही अच्छे तरह से नहीं आता था, बल्कि फंसने पर निकलना भी आता था। हालंाकि वह भले ही दूसरी बार भी पकड़ लिया गया। यह सिर्फ एक ही डॉक्टर का मामला नहीं है। संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल आरबीएम व जनाना अस्पताल के अलावा जिले में ज्यादातर अस्पतालों में सरकारी अस्पताल में मरीजों को देखा जाता है और ऑपरेशन के नाम पर उन्हें घर बुलाकर मोटी रकम वसूल की जाती है। भोले भाले मरीज मजबूरी में जेब कटवा बैठते हैं। असल में किसी एक डॉक्टर को पकड़े जाने से यह खेल बंद नहीं हो सकता है। खुद आमजन को भी चाहिए कि ऐसे डॉक्टर, कर्मचारी व अधिकारी सामने आएं तो उनकी शिकायत सीधे एसीबी को ही की जाए। क्योंकि विभाग में तो जांच का जिम्मा भी दोषी को ही दिया जाता है। ऐसे में क्लीन चिट की लिखावट भी रिश्वत के सिस्टम की स्याही में डूबी होती है।