4147 से बढ़कर 46 लाख जातियां निकलीं तो दब गई रिपोर्ट
अंग्रेजों ने साल 1872 से 1931 तक जितनी बार भी जनगणना कराई, उसमें जाति के आंकड़े भी जुटाए गए। आजाद भारत में 1951 में हुई पहली जनगणना से केवल अनुसूचित जाति और जनजाति के आंकड़े ही जुटाए गए। राजनीतिक दबाव में 2011 तत्कालीन यूपीए सरकार के समय सामाजिक-आर्थिक-जातिगत जनगणना हुई लेकिन आंकड़े जारी नहीं हुए। केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई के दौरान दायर हलफनामे में कहा था कि ‘साल 2011 में जो जातिगत जनगणना हुई थी, उसमें कई स्तर की खामियां थीं जिससे निकले आंकड़े गलत और अनुपयोगी थे। केंद्र के मुताबिक देश में 1931 में हुई आखिरी जातिगत जनगणना में कुल जातियों की संख्या 4,147 थी, जबकि 2011 में हुई जाति जनगणना में जातियों की संख्या 46 लाख से ज्यादा निकली थी। आंकड़ों पर संदेह होने पर सरकार ने इसे सार्वजनिक करने की जगह इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया। यह पढ़ें-
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अगले साल होने वाली जनगणना के लिए 31 दिसंबर 2024 तक सभी जिलों और गांवों की सीमाओं को फ्रीज करने की तैयारी है। ताकि, राजस्व इकाइयों की सीमाओं में फेरबदल से जनगणना के आंकड़ों में किसी तरह का परिवर्तन न हो सके।
इन आंकडों के लिए होती है जनगणना
साक्षरता दर, बच्चे, युवा, महिलाओं, पुरुषों की संख्या, शिक्षा, आवास, मृत्यु दर, भाषा, धर्म, उम्र, शहरीकरण, प्रजनन क्षमता, मृत्यु दर, भाषा, धर्म, लिंग, वैवाहिक स्थिति आदि डेटा का संग्रह होता है। गांव, कस्बे और वार्ड स्तरों पर प्राथमिक डेटा के लिए हर 10 वर्ष पर जनगणना होती है। दो बड़े काम अटके हैं जनगणना के कारण
- निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन: जनगणना की ताजा रिपोर्ट आने के बाद लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों का नए सिरे से परिसीमन होगा। आखिरी बार परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर 2008 में हुआ था। इस बार यह काम 2026 में होना है।
- महिला आरक्षण लागू होगा: लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण भी जनगणना और निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद ही लागू होगा। संसद ने सितंबर 2023 में पारित महिला आरक्षण विधेयक को लागू करने के बारे में यह प्रावधान किया है।