सामने आएंगे दुष्परिणाम- जलाशय में तेजी से फैल रही खरपतवार के दुष्परिणाम गर्मी के दिनों में सामने आएंगे। दरअसल जलकुंभी तेजी से फैल रही है और यह पानी का वाष्पीकरण 7 गुना तेजी से करेगी। ऊपर से इस वर्ष अल्पवर्षा हुई है। जलाशय में पहाड़ी नदियों से मिट्टी, पत्थर के कण, शहरी नालों का मलबा और सतपुड़ा जलाशय की राख पहुंचने से क्षमता घटकर 60 एमसीएम तक पहुंच गई है। निर्माण के समय जलाशय की क्षमता 110 एमसीएम थी। वर्ष 2008 के सर्वे में 75 एमसीएम रह गई थी। इसलिए गर्मी के दिनों में पानी की किल्लत से इंकार नहीं किया जा सकता।
क्या है जलीय खरपतवार- जलकुंभी जिसे वाटर हाइसिंथ कहते हैं। इसे समुद्र सोख भी कहा जाता है। यह विदेशी खरपतवार है। 1855 में कोलकत्ता में पाई गई। इसके बाद से यह देश भर के जलाशयों में तेजी से फैल रही है। जिस जलाशय में जलकुंभी है। उस जलाशय के पानी का वाष्पीकरण 7 गुना तेजी से होता है। दरअसल जलकुंभी में 90 प्रतिशत पानी होता है। इससे पानी का वाष्पीकरण करने में सहायक है। छोटे तालाबों में यदि जलकुंभी फैल जाए तो उसे बहुत तेजी से सूखा देती है। वहीं साल्वीनिया मोलेस्टा जिसे चाइजि झालर भी कहते हैं। साउथ इंडिया में पाई जाने वाली इस खरपतवार के लिए सारनी क्षेत्र का मौसम उपयुक्त है। यह खरपतवार कुछ ही दिनों में जलाशय के पानी के ऊपर खेल मैदान की घास की तरह फैल जाती है। सतपुड़ा जलाशय में तीसरी सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली खरपतवार हाइड्रा वर्टिसीलाटा है। यह पानी के भीतर पाई जाती है। इसके अलावा टाइफा समेत अन्य जलीय खरपतवार सतपुड़ा जलाशय में तेजी से फैल रही है।
बन सकती है खाद – डीडब्ल्यूआर के शोधकर्ता डॉ सुशील कुमार, डॉ. वीके चौधरी बताते हैं कि जलाशय से निकलने वाली खरपतवार से एक लाख मीट्रिक टन खाद बनाई जा सकती है। यह खेतों की उर्वकता बढ़ाने में सहायक है। इसके लिए प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। इस खाद का उपयोग नर्सरी, घरों के बगीचे, कृषि अनुसंधान केंद्र, वन विभाग द्वारा किया जा सकता है। केंचुआ खाद बनाने के लिए यह जलीय खरपवार सबसे उपयोगी है। खाद बनाने मुफ्त प्रशिक्षण भी दिया जा सकता है।