नारायणदासजी का जन्म विक्रम संवत 1984 यानि 1927 ईस्वी को शाहपुरा तहसील के चिमनपुरा ग्राम में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम रामदयाल जी शर्मा तथा माता का नाम श्रीमती भूरी बाई था। कहा जाता है कि बचपन में ही इनके माता पिता ने इनकी बीमारी की वजह से इन्हें भगवानदास महाराज के पास छोड़ दिया था। नारायणदास जी ने बाल्यावस्था में ही संन्यास ले लिया था। इन्होंने अपने गुरुजी की दिन-रात सेवा कर उनसे शिक्षा-दीक्षा ग्रहण की तथा समाज सेवा में लग गए। इनके मुख से हमेशा सीता-राम का जाप रहता है।
जिन नारायणदास जी को बचपन में बीमारी की वजह से गुरु शरण में छोड़ा था, उन्होंने वैराग्य धारण कर ऐसे-ऐसे कार्य किए कि आज ये लाखों लोगों के पथ प्रदर्शक हैं। इनके आश्रम में रोजाना हजारों की तादाद में श्रद्धालु अपने मार्गदर्शन तथा आशीर्वाद के लिए आते हैं। इन्होंने शिक्षा, चिकित्सा, गौ सेवा, समाज सेवा तथा अध्यात्म के क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया है। इनका हमेशा से शिक्षा तथा स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान रहा है तथा लोगों को शिक्षित तथा निरोगी रखना इनके जीवन का प्रमुख ध्येय रहा है।
शिक्षा के लिए इन्होंने जयपुर में जगदगुरु रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, चिमनपुरा में बाबा भगवानदास राजकीय कृषि महाविद्यालय तथा बाबा भगवानदास राजकीय पीजी महाविद्यालय, शाहपुरा में लड़कियों के लिए बाबा गंगादास राजकीय पीजी कॉलेज तथा त्रिवेणी में वेद विद्यालय की स्थापना तथा संचालन में अमिट योगदान दिया है। शिक्षा की तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी जयपुर तथा निकटवर्ती जिलों में कई अस्पताल भी संचालित कर रहे हैं। इन्होंने त्रिवेणी धाम में विश्व की प्रथम पक्की 108 कुंडों की यज्ञशाला का निर्माण करवाया। इन सभी परोपकार के कार्यों से जुड़े रहने के कारण इन्हें गणतंत्र दिवस पर पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
महाराज त्रिवेणी के बड़े संत होने के साथ-साथ गुजरात के डाकोर धाम की ब्रह्मपीठाधीश्वर गद्दी के महंत भी हैं। नारायणदास महाराज जनता के पैसे को जनकल्याण पर ही खर्च करने की प्रेरणा देते रहे। इसलिए सिंहस्थ में आने वालों के लिए दोनों समय भोजन की व्यवस्था होती है। यहां बिना किसी भेदभाव के रोजाना लगभग पंद्रह हजार से भी अधिक लोग भोजन प्रसादी ग्रहण करते हैं। त्रिवेणी धाम जयपुर दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित शाहपुरा कस्बे से दस किलोमीटर तथा श्रीमाधोपुर से 40 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ों की तलहटी में त्रिवेणी के तट पर स्थित है।