संघर्षों भरी रही जीवन की शुरुआत
रूमा देवी का जन्म बाड़मेर के छोटे से गांव रावतसर में 1988 में हुआ। जब चार साल की थी, तब मां साया सिर से उठ गया। आठवीं तक जैसे-तैसे शिक्षा ग्रहण करने के बाद अन्य हजारों लड़कियों की तरह उन्हें भी स्कूल से अलग दिया गया और शादी कर दी गई।
कशीदाकारी से शुरू हुई सफलता की यात्रा
17 साल की उम्र में माँ बनने के बाद 48 घंटे में उनका बेटा मर गया। इसके बाद उन्होंने कुछ करने की ठानी। बचपन में दादी से सीखा कशीदाकारी के काम से शुरूआत की। स्वयं सहायता समूह का गठन कर कशीदाकारी कार्य शुरू किया ताकि परिवार में कुछ आमदनी हो सके।
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22 हजार से अधिक महिलाओं को मिला लाभ
ग्रामीण विकास एवं चेतना संस्थान के अध्यक्ष के रूप में साल 2010 में कार्य करना शुरू किया और बाड़मेर जिले के गाव-गांव, ढाणी-ढाणी अपने सेंटर स्थापित कर कम्युनिटी मोबिलाइजेशन, स्किल विकास प्रशिक्षण, डिज़ाइन विकास प्रशिक्षण, सिलाई प्रशिक्षण, वित्तीय साक्षरता एक्सपोजऱ विजिट, देश विदेश की क्राफ्ट प्रदर्शनियों में भागीदारी, स्वयं सहायता समूहों का गठन एवं प्रशिक्षण, शिल्पी पहचान पत्र तैयार कर दस्तकारों को सरकार की योजनाओं का लाभ दिलाना, समूहों को विपणन गतिविधियों से जोडऩा, फैशन शो के माध्यम से कला का प्रमोशन करना जैसे कार्यक्रम आयोजित कर बाड़मेर जिले की 22 हजार महिला दस्तकारों को लाभान्वित किया।
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नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित
राष्ट्रपति ने उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया। केबीसी ने भी उन्हें कार्यक्रम में नारी शक्ति की पहचान के रूप में आमंत्रित किया था। अनगिनत पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी डॉ. रूमादेवी की आज एक अलग ही पहचान बन चुकी है। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में नारी शक्ति के रूप में आज उन्हें देखा जा रहा है। वे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित कांफ्रेंस में भी स्पीकर के रूप में शामिल हुई। जहां उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की छात्राओं को कशीदे की कला की बारीकियां भी समझाई।