गिद्ध हमारे पर्यावरण के लिए बहुत अहम हैं। ये मृत मवेशी को खाकर पर्यावरण को संतुलित, साफ एवं वायुमंडल को स्वच्छ रखते हैं। गिद्धों की न•ार तेज होती है। ऐसा माना जाता है कि वे खुले मैदानों में चार मील दूर से तीन फ़ीट का शव देख सकते हैं। कुछ प्रजातियों में, जब कोई व्यक्ति शव देखता है तो वह उसके ऊपर चक्कर लगाना शुरू कर देता है। इससे दूसरे गिद्धों का ध्यान आकर्षित होता है और फिर वे भी उसमें शामिल हो जाते हैं। भारतीय गिद्ध एक प्रमुख प्रजाति है जिसे 2002 से आईयूसीएन की रेड लिस्ट में गंभीर रूप से संकटग्रस्त जीव के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, क्योंकि भारतीय गिद्ध संकट के दौरान इनकी संख्या में भारी गिरावट आई है।
गिद्धों के लुप्तप्राय होने के कारण 1990 के दशक की शुरुआत में मवेशियों के लिए एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा के रूप में डाइक्लोफेनाक के इस्तेमाल में वृद्धि के कारण गिद्धों की आबादी में 95त्न से अधिक की गिरावट आई। इससे वे सामान्य से गंभीर रूप से लुप्तप्राय हो गए। गिद्ध शिकारी पक्षियों की श्रेणी में आने वाले पक्षी हैं, जो वास्तविकता में शिकार नहीं करते, अपितु मृत पशुओं के अवशेषों को खाकर अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इसलिए इन्हे अपमार्जक या मुर्दाखोर कहा जाता है।
शाहाबाद के बाद केलवाड़ा, खांकरा के जंगल क्षेत्र में गिद्धों का होना क्षेत्र के लिए शुभ संकेत हैं। वहीं इस क्षेत्र में नीलगाय, लकड़बग्घा, सियार जैसे वन्यजीवों की उपस्थित भी रहती है। उच्च अधिकारियों को इस संबंध में अवगत कराया जाएगा।
दीपक चौधरी, क्षेत्रीय वन अधिकारी, रेंज केलवाड़ा