यहां बहन-बेटी की जमीन का हिस्सा खाना तो दूर फसल तक में भी उसका हिस्सा तय है। इतना ही नहीं परिवार के लोग पहले फसल का हिस्सा बहन-बेटी के घर पहुंचाते हैं। इससे पहले परिवार का कोई भी सदस्य भुट्टे का दाना तक नहीं खाता है। स्थानीय भाषा में इस प्रथा को ‘जातर प्रथा’ कहा जाता है। जो सदियों से चली आ रही है।
पहले भगवान फिर बेटी को अर्पण
जातर प्रथा की पालना में क्षेत्र के किसान मक्का की फसल कटने के साथ गांव में निश्चित स्थान पर एकत्र होते हैं। यहां पर पूजन, पाठ और भजन कर भगवान को फसल अर्पित की जाती है। इसी दौरान बेटी का हिस्सा अलग किया जाता है। बहन-बेटी का घर चाहे दूर हो या पास। परिवार के लोग उसे फसल का हिस्सा देने जाते हैं। इसके बाद घर के सदस्य भुट्टे का सेवन करते हैं। प्रथा देती है एकजुटता का संदेश
वडलीपाड़ा
के बुजुर्ग ग्रामीण कालू भाई मईडा बताते हैं कि खरीफ फसल में मक्के में भुट्टे की उपज के बाद आमतौर पर इसे मनाया जाता है। जिसमें गांवों के सभी लोग सम्मिलित होते हैं। गांवों में यह आयोजन हरियाली अमावस्या के आसपास और भुट्टे की फसल पकने पर होता है।
कई इलाकों में इसे भजन कीर्तन के नाम से भी जानते हैं। फसल कटाई के बाद शाम को घर के लोग और ग्रामीण एकत्र होकर भजन कीर्तन करते हैं। पूरी रात भजन गाने के बाद दूसरे दिन सुबह गांव के वरिष्ठ व्यक्ति या मुखिया के घर जाया जाता है। शाम को भगवान और पूर्वजों को भोग लगाकर प्रसाद वितरण करते हैं।
खेती में उपयोग आने वाले मवेशियों को भी फसल के भुट्टे खिलाते हैं। इस दौरान किसान भगवान, प्रकृति और मवेशियों को फसल उपज में सहयोग के लिए धन्यवाद भी देते हैं। फिर किसान घर की बेटियों को फसल का हिस्सा देने के लिए उनकी ससुराल जाते हैं।