बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद
राजकुमार रोत ने कहा कि अब तक हमें गलत पढ़ाया गया। मानगढ़ धाम पर शहीद हुए हमारे 1500 पूर्वज यहां पर भील प्रदेश की रूपरेखा तैयार करने आए थे। धर्म सभा एक बहाना था, वरना अंग्रेजों को हमारे धर्म से क्या मतलब था। तब से ही भील प्रदेश की मांग चली आ रही है।
वक्ताओं ने कहा कि मोचों के पास 4 विधायक और एक सांसद हैं। हालांकि रैली में एक सांसद और एक विधायक ही पहुंचे। रैली को इस बार पूरी तरह से हाईटेक बनाने का प्रयास किया गया। इसमें जहां-जहां पुलिस मौजूद थी, उन सभी जगह पर आदिवासी परिधान में वॉकी टॉकी से लैस सुरक्षा गार्ड तैनात थे। वे भीड़ के नियंत्रण के साथ ही पार्किंग व अन्य व्यवस्था भी देख रहे थे।
केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल
समाज ने राजस्थान, एमपी महाराष्ट्र व गुजरात के 49 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग की। इसमें राजस्थान के पुराने 33 जिलों में से उदयपुर समेत 12 जिलों को शामिल करने की मांग है। वक्ताओं ने कहा, हम ऐसा प्रदेश चाहते हैं जिसमें कलक्टर, एसपी, एसडीएम से लेकर हर कर्मचारी आदिवासी होगा। इनमें केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल करने की मांग है। वहीं राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़ व दादर नगर हवेली से भी समाजजन के आने का दावा किया।
इन जिलों में अपने-अपने राज्यों से अलग करने की मांग
राजस्थान : बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर, झालावाड़, राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, पाली।
गुजरात : अरवल्ली, महीसागर, दाहोद, पंचमहल, सूरत, बड़ोदरा, तापी, नवसारी, छोटा उदेपुर, नर्मदा, साबरकांठा, बनासकांठा, भरूच, वलसाड़।
मध्यप्रदेश : इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, धार, देवास, खंडवा, खरगोन, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर।
महाराष्ट्र : नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार।
‘भांजगड़ा’ के निर्णय ही मानने होंगे
बहीं बागीदौरा विधायक जय कृष्ण पटेल ने कहा कि अब प्रशासन और सरकार को संभल जाना चाहिए कि गनमजी नहीं चलेगी। आप जब थाहो आदिवासी परिवार के बच्चों को गिरफ्तार नहीं कर सकते। हम ग्राम पंचायत में ‘मांजगडा (विवादों का निपटारा करने की आदिवासियों की परंपरा) में जो फैसला ले लेंगे यह मानना होगा। वरना फिर देख लेना।