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बैंगलोर

हिंदू संस्कृति का पावन त्योहार है रक्षाबंधन-मुनि कमल कुमार

रक्षाबंधन पर विशेष

बैंगलोरAug 01, 2020 / 04:44 pm

Yogesh Sharma

हिंदू संस्कृति का पावन त्योहार है रक्षाबंधन-मुनि कमल कुमार

हिंदू संस्कृति का पावन त्योहार है रक्षाबंधन-मुनि कमल कुमार

बेंगलूरु. शांतिनगर में चातुर्मास के लिए विराजित मुनि कमल कुमार ने कहा कि हिंदू संस्कृति का पावन त्योहार है रक्षाबंधन। उसका संबंध भाई बहन से है। प्रत्येक त्योहार की अपनी-अपनी स्वतंत्र महत्ता होती है। उसे मनाने के तरीके भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इसे हमें स्वीकारना होगा। रक्षाबंधन का त्योहार श्रावण शुक्ला पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन बहन अपने भाई के घर बड़े ही उत्साह से और उमंग के साथ एक थाली में राखी कुमकुम अक्षत मिठाई लेकर जाती है, और भाई भी अपनी बहन की प्रतीक्षा में रत रहता है।
बहन भाई के घर पहुंचकर भाई को पट्टे पर बिठाकर माथे पर कुमकुम का तिलक करके उसके ऊपर से अक्षत चिपकाकर भाई के मुंह में मिठाई का ग्रास देती है। तत्पश्चात दाएं हाथ (सजे हाथ) की कलाई पर राखी बांधती है। उस समय भाई-बहन दोनों के दिल में पवित्र प्रेम की मानों सरिता सी बहने लगती है। कुमकुम से तिलक का लक्ष्य होता है कि मेरा भाई कुमकुुम के लाल रंग के समान शक्तिमान हो और श्वेत अक्षत लगाने का अर्थ होता है कि मेरे भाई की सुयश कीर्ति अक्षत और उज्जवल हो। मुंह मीठा करने का लक्ष्य होता है मेरे भाई की वाणी में मधुरता हो, क्योंकि जो स्वयं शक्तिमान नहीं है, जिसकी कीर्ति उज्जवल नहीं है, जिसकी वाणी मधुर नहीं है वो औरों की रक्षा कैसे करेगा। बहन इन शुभ भावों को आधार बनाकर भाई के राखी बांधती है कि मेरा भाई समय-समय पर मेरी रक्षा करे। इस पर्व के शुभारंभ का लक्ष्य बहुत अच्छा था परंतु आज हम देखते हैं यह दिन मानो बहनों के व्यापार का दिन हो गया है। वह देखती है कि मैंने भाई के 20 रुपए की राखी बांधी, भाई ने तो 5 रूपये ही राखी बंधाई के दिए हैं। आजकल सैकड़ों हजारों की राखी तैयार होने लगी है और रक्षाबंधन जो केवल कच्चे धागे रोली मोली से प्रारंभ हुआ था, वह आज आडंबर का रूप ले रहा है। हमें रक्षाबंधन के सही हार्द तक पहुंचने का प्रयास करना चाहिए और इस पावन संस्कृति की सुरक्षा करने का प्रयास करना चाहिए।
सांसारिक लोगों का संबंध एक दूसरे के बिना नहीं चलता इसलिए ही जैन प्रतीक के नीचे लिखा गया है ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्’ अर्थात सांसारिक लोगों का संबंध एक-दूसरे से मिलने से चलता है। परंतु अपनी निर्मलता पवित्रता को अक्षुण्ण रखना चाहिए और इस पर्व को मनाने का उद्देश्य स्मृति में रखना चाहिए।

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