उथप्पा को यह अंतरिम राहत न्यायाधीश सूरज गोविंदराज की अध्यक्षता वाली पीठ ने दी और वारंट और पीएफ मामले से संबंधित सभी कार्रवाइयों पर अंतरिम रोक लगा दी। उथप्पा के खिलाफ क्षेत्रीय पीएफ आयुक्त एवं वसूली अधिकारी के आदेश पर गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया था।
क्या है पूरा मामला
उथप्पा पर पीएफ में धोखाधड़ी का आरोप है, यह विवाद एक निजी फर्म सेंटारस लाइफस्टाइल ब्रांड से जुड़ा है। 2018 से 2020 तक उथप्पा इसमें डायरेक्टर थे। पीएफ अधिकारियों के जारी किए गए नोटिस के मुताबिक कंपनी की ओर से कर्मचारियों का पीएफ अंशदान काटा जा रहा था, लेकिन उनके खातों में ये धनराशि जमा नहीं की गई थी। यह राशि तकरीबन 23.16 लाख रुपए है।
उथप्पा ने दिया ये तर्क
उथप्पा की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रभुलिंग नवडगी ने कोर्ट को बताया कि उथप्पा ने 2020 में फर्म के निदेशक पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके अलावा भी अपने कार्यकाल के दौरान भी कंपनी के दिन प्रतिदिन के संचालक में शामिल नहीं थे। इसके लिए कंपनी के संस्थापक कृष्णदास टी. हवड़े के साथ उनका अनुबंध भी था।
नियमों के तहत उथप्पा नियोक्ता नहीं
उथप्पा के वकील की ओर से कहा गया कि 22 दिसंबर को उथप्पा अधिकारियों को ये बता चुके हैं कि वह इस कंपनी के निदेशक नहीं हैं और कंपनी के किसी भी प्रबंधन या दिन-प्रतिदिन के कार्यों में शामिल नहीं हैं और इसलिए उन्हें ईपीएफ अधिनियम के तहत नियोक्ता नहीं माना जा सकता है। मामले में दोनों पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने अपना फैसला सुनाया है।