उन्होंने यहां पत्रकारों से कहा कि अगर पीड़ितों की ओर से माइक्रो फाइनेंस कंपनियों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जाती है तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उनका यह बयान राज्य भर में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों से ऋण लेने वालों के बड़े पैमाने पर उत्पीडऩ की खबरों के मद्देनजर आया है। आत्महत्या के मामले भी सामने आए हैं, जबकि कुछ मामलों में, रिकवरी एजेंटों द्वारा उत्पीडऩ के कारण लोग अपने गांव छोडक़र चले गए हैं।
25 जनवरी को राज्य सरकार ने उत्पीडऩ रोकने के लिए एक विधेयक लाने का भी निर्णय लिया और मुख्यमंत्री ने सूक्ष्म वित्त कंपनियों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक में ऋण देने और वसूली प्रक्रिया के संदिग्ध तरीकों पर सवाल उठाए।
अगले सप्ताह मसौदा विधेयक पर चर्चा
राज्य मंत्रिमंडल 30 जनवरी को अपनी अगली बैठक में माइक्रोफाइनेंस कंपनियों की गतिविधियों को विनियमित करने के लिए एक मसौदा विधेयक पर चर्चा करेगा। कानून और संसदीय मामलों के मंत्री एच.के. पाटिल ने संकेत दिया कि मसौदा विधेयक अगले चार दिनों में तैयार हो जाएगा और इसे अगली कैबिनेट बैठक में चर्चा के लिए रखा जाएगा। उन्होंने कहा कि हमने अनुभवी पुलिस अधिकारियों के बीच मसौदा वितरित किया है और उनकी प्रतिक्रिया मांगी है। उन्हें बाद में कार्रवाई करने के लिए अधिकार नहीं दिए जाने की शिकायत नहीं करनी चाहिए।
पाटिल ने गदग में पत्रकारों से कहा, मुख्यमंत्री को यह बिल दिए जाने से पहले गृह मंत्री जी. परमेश्वर, राजस्व मंत्री कृष्ण बैरेगौड़ा और उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार से भी चर्चा करेंगे। उन्होंने कहा, समस्या यह है कि कंपनियों ने वसूली का काम राउडी शीटर्स को सौंप दिया है।
इस बीच, सहकारिता मंत्री के.एन. राजण्णा ने कहा कि अगले विधानसभा सत्र में विधेयक पेश किया जाएगा। उन्होंने कहा कि उच्च ब्याज दरों पर अंकुश लगाने की आवश्यकता है। नए कानून पर चर्चा चल रही है। गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थान आरबीआई से लाइसेंस प्राप्त करते हैं और राज्य सरकार केवल तभी हस्तक्षेप कर सकती है जब वे लोगों को परेशान करते हैं।