ऐसे में माना जाता है कि यहां मेले का इतिहास मंदिर जितना ही पुराना है। यानी 9वी सदी में मंदिर के निर्माण के साथ ही यहां कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान की परंपरा शुरू हो गई। लोगों के जुटने के साथ मेला भरना भी शुरू हुआ। पलारी ब्लॉक के साथ-साथ पूरे
बलौदाबाजार जिले की इस जगह पर अगाध आस्था है। कार्तिक पूर्णिमा पर स्नान करने के लिए यहां गुरुवार रात से ही लोगों की भीड़ जुटने लगी थी। भीड़ की वजह से सुबह तक इंतजार करना संभव नहीं, इसलिए लोगों ने आधी रात से ही स्नान करना शुरू कर दिया था।
यह सिलसिला शुक्रवार सुबह करीब 8 बजे तक चलेगा। पुण्य स्नान के बाद लोग मनौतियां लेकर सिद्धेश्वर मंदिर के दरबार पहुंचते हैं। मंदिर में इस मौके पर विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। पास ही सतनामी समाज का विशाल जैतखाम है। यहां भी कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर पालो फहराने की रस्म निभाई जाएगी। इसके अलावा तालाब किनारे पूरे दिन मेला सजेगा। इसके लिए दुकानें और झूले पहले ही लगाकर तैयार कर लिए गए हैं।
नौका विहार का इंतजाम
मेले को देखते हुए नगर पंचायत ने व्यापक तैयारियां की हैं। दुकानें व्यवस्थित लगें, इसलिए मार्किंग की है। फोर्स भी तैनात रहेगी। मनोरंजन के लिए नौका विहार का इंतजाम है। लोग इस पर बैठकर लंबे-चौड़े तालाब में घूमने का मजा ले सकेंगे। सांस्कृतिक कार्यक्रमों में यादव समाज की ओर से राउत नाचा की प्रस्तुति दी जाएगी। विश्व धरोहर लक्ष्मण मंदिर के समकक्ष सिद्धेश्वर देवालय
बालसमुंद तालाब किनारे लाल ईंटों से बना सिद्धेश्वर मंदिर विश्व धरोहर में शामिल सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर के समकक्ष है। मंदिर की खासियत ये है कि इसे पूरी तरह लाल ईंटों से बनाया गया है। मंदिर की सभी दिशाओं में देवी-देवताओं की मूर्तियां भी लाल ईंटों को ही उकेरकर बनाई गई हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर भगवान अर्ध नारीश्वर का स्क्ल्प्चर नजर आता है। एक ही शिला पर नक्काशी के जरिए उकेरी गई मां गंगा, यमुना का दृश्य अद्वितीय है। मुख्य द्वार पर शिव-पार्वती विवाह का चित्रण किया गया है। मंदिर परिसर में ही सिद्ध बाबा भी विराजमान हैं।
मान्यता है कि यहां जो कोई भी सच्चे मन से मनौती मांगता है, उसकी मनोकामना जरूरी पूरी होती है। वर्तमान में पूरा मंदिर पुरातत्व विभाग के अधीन है। परिसर में ही हनुमान, दुर्गा, राधा-कृष्ण और गुरु बाबा घासीदास का मंदिर भी है। यहां पूजा-अर्चना के लिए बड़ी संख्या में लोग जुटते हैं।
खानाबदोशों ने खोदा तालाब बर्तन तैरा, नाम पड़ा बालसमुंद
वदंती है कि खानाबदोशों का समूह इस इलाके में आया था। पानी की बहुत कमी होने पर उन्होंने ही छैमासी रात में 150 एकड़ का यह तालाब खोदा। काफी खोदने के बाद भी तालाब से पानी का एक बूंद नहीं निकला। इसके बाद भगवान सिद्धेश्वर खानाबदोशों के मुखिया के सपने में आए। उनसे कहा कि अपने पुत्र को थालीनुमा बड़े बर्तन में रखकर वहां प्रवाहित कर दें। बताते हैं कि इसके कुछ दिन में ही तालाब पानी से लबालब हो गया। वह बर्तन भी ऊपर आकर तैरने लगा, जिस पर मुखिया ने अपने बच्चों को रखा था। इस तरह तालाब का नाम बालसमुंद बड़ा। कहा जाता है कि तालाब के पानी का मुख्य स्रोत 12 किमी दूर बहने वाली महानदी है। हालांकि, इस बीच का पूरा रास्ता दलदली है। इस वजह से तालाब के असल स्रोत के बारे में ठीक-ठाक जानकारी नहीं है। कभी न सूखने वाला ये तालाब लोगों के लिए गंगा समान है।