गोवारी पूजा स्थल में गोवारा समाज के सभी मित्र-बंधुओं ने जोर-शोर से तैयारी की थी। जिसमें शहनाई का जुलबंधी कार्यक्रम दोपहर में पेश किया गया। समाज के वरिष्ठ लोगों ने गोवर्धन स्थल पर गाय खिलाने का कार्यक्रम विधि विधान से किया। आखर मैदान में गोबर से गोवर्धन पर्वत को फूलों से सजाया गया था। इसके बाद बाजार से गोवारी समाज के सदस्यों ने अनाज उघाई की। इसी अनाज से खिचड़ी बनाकर गौ माता को खिलाई गई।
गाय के बच्चे को गोवारी समाज के पूज्यनीय व्यक्ति ने छिपाकर रखा था। गाय को बछड़ा न दिखने की वजह से वह अपना बछड़ा ढूंढने की कोशिश करने लगी। गाय को बिचकाने के लिए जोर-जोर से शहनाई बजाने लगे और डर से गाय के आमने सामने उसे हमरने के लिए मजबूर करने लगे। देखते ही देखते गाय आक्रोशित हो गई। गाय के बछड़े को गोवर्धन पर लेटा दिया गया और गाय अपने बछड़े के उपर से लांघ गई। बस फिर खुशियां की झड़ी में एक दूसरे को गोबर का तिलब लगाकर बधाईयों का दौर शुरु हो गया।
गोवारी समाज के वरिष्ठ लोगों ने बताया कि आक्रोशित होकर जब गाय चिल्लाने लगी मांनों ऐसा लगता है कि स्वयं ब्रजवासी गोवर्धन भगवान कृष्ण पूजा स्थल पर आशीर्वाद स्वरुप अपना सूक्ष्म रुप देकर चले जाते हैं। उसी गोवर्धन के उपर छोटे बच्चों को लिटाकर दीर्घायु व स्वस्थ्य जीवन की कामना की जाती है।
शहर के वार्ड नंबर 33 और कोसमी में भी गाय खिलाने की परंपरा निभाई गई। गायखुरी के दिलीप राउत ने बताया कि पिछले आठ सालों से यह आयोजन बंद था। इस बार समाज के लोगों के साथ बैठक कर पुन: गाय खिलाने की परंपरा शुरू की गई है। ग्राम से करीब छह सात गाय बछड़े सहित लेकर लोग पहुंचे थे। एक-एक कर सभी गाय को आखर मैदान में खिलाया गया।