यहां पर पातालोक में है हनुमान जी का पैर
यहां पर हनुमान जी की प्रतिमा है जो कि लंगड़े हनुमान जी के नाम से मशहूर है। पौराणिक मान्यताओं को अनुसार पूर्व मुखी हनुमान जी की मूर्ति का एक पैर जमीन और दूसरा पैर जमीन के अंदर है। कई सालों पहले यहां हनुमान जी मूर्ति हटाकार मंदिर में स्थापित करने की कोशिश की गई थी, लेकिन पचास फीट गड्ढा खोदने के बावजूद पैर का दूसरा हिस्सा नहीं मिल पाया था। ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी का पैर पाताल में लोक में है। यहां पर हनुमान जयंती और रामनवमी के अवसर पर भक्तों का खूब तांता लगता है।
रेत का शिवलिंग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर रेत का शिवलिंग स्वंयभू है। जो कि चंदन नदी के किनारे स्थित है। जहां सूरज की पहली किरण शिवलिंग पर पड़ती है। फिर भगवान राम के चरणों में जाकर गिरती है। यहां पर प्रभु श्रीराम को काले बालाजी के नाम से भी जाना जाता है।
भगवान राम की वनवासी रुप में प्रतिमा है विराजमान
प्रभु राम और माता सीता की क्रोधित रुप में वनवासी प्रतिमा विराजमान है। जो कि भगवान के वनवास के दौरान भ्रमण को दर्शाती है। यहां पर ऐसी मान्यता है कि वनवास के दौरान प्रभु राम और माता सीता ऋषि शरभंग के आश्रम पहुंचे थे। तभी वहां रामपायली से कुछ दूर स्थित देवगांव में विराध नामक राक्षस आ पहुंचा था। जिसका वध करने के बाद उन्होंने ऋषि शरभंग के दर्शन किए थे। इस दौरान माता सीता के सामने राक्षस आने से वह भयभीत हो गई थी। तभी प्रभु राम ने विकराल रुप धारण कर लिया था। इसी रुप में रामपायली मंदिर में बालाजी और माता सीता की वनवासी प्रतिमा विराजमान हैं।