:- प्रत्येक वार्डो में फायर एक्सटिंग्युशर पर्याप्त संख्या में लगाए जाने चाहिए।
:- उन्हें चलाने की जानकारी भी दी जाए।
:- बिजली की वायरिंग, बोर्ड, स्विच आदि भी समय-समय पर चेक कराएं जाए।
:- सेंट्रल एयरकंडीशन के संचालन में भी मानकों की अनदेखी न करें।
:- स्टॉफ को समय-समय पर फायर सेफ्टी ट्रेनिंग और मॉकड्रिल भी होनी चाहिए।
:- अस्पतालों में व्यवस्था बनाएं रखने में किसी भी तरह की चंूक नहीं होनी चाहिए।
पत्रिका पड़ताल में सामने आया कि अस्पताल प्रबंधन ने बच्चा वार्ड में फायर एक्सटिंग्युशर तो लगाए हैं। लेकिन अन्य वार्डो में अग्निशामक सिलेंडरों का अब भी अभाव बना हुआ है। ग्राउंड फ्लोर में फायर सेफ्टी की स्थिति ठीक है। लेकिन पहले माले पर बने वार्डो में अंदर प्रवेश व बाहर निकलने के इंतजामों में कमी है। कुछ स्थानों पर स्पार्किंग जैसी स्थिति बनने के भी आसार बन सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण स्टॉफ फायर सेफ्टी ट्रेनिंग से अब भी अनभिग्य है। जिन्हें अग्निशामक सिलेंडरों के उपयोग से संबंधित भी जानकारियों का अभाव है। स्टॉफ से चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि फायर सेफ्टी से संबंधित मॉकड्रिल भी लंबे समय से नहीं हुई है। इसलिए खासकर नए व युवा स्टाफ को अग्निशामक सिलेंडर के उपयोग संबंधित कोई जानकारी नहीं है।
पूरे मामले में जिला अस्पताल के सिविल सर्जन डॉ निलय जैन ने बताया कि आगजनि की घटनाओं की रोकथाम को लेकर जिला अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह से तैयार है। उन्होंने बताया कि जिला अस्पताल में ग्राउंड फ्लोर व एक ही माला है। ऐसे में यहां आगजनिक की संभावना बहुत कम है। यदि होती भी है तो समय रहते सभी को बाहर कर लिया जाएगा। यहां एसएनसीयू, बच्चा वार्ड व एनआरसी को भी नए भवन में सिफ्ट किया जा रहा है। सभी वार्ड लंबे व हवादार है। वार्डो के पलंगों के बीच काफी डिस्टेंस है, ताकि मरीज व परिजन आसानी से बाहर निकल सकें। फर्नीचर का उपयोग काफी कम है। बेड सहित अन्य इक्यूमेंट सभी लोहे हैं। लिकेज, लुप लाइन नहीं है। इलेक्ट्रेसिटी का हमारे यहां आडिट होते रहता है। जहां पर भी स्पार्किंग की संभावना होती है, वह आडिट रिपोर्ट बनती है, उसके हिसाब से हम काम करते हैं।
सीएस डॉ जैन के अनुसार अस्पताल में 20 से 25 फायर एक्सटिंग्युशर सिलेंडर व इसके ट्रेनर मौजूद है। नपा व अन्य एजेंसियों से स्टॉफ को प्रशिक्षित भी किया जाता है। वर्तमान में करीब सवा करोड़ से फायर सेफ्टी लाइन व पूरा सिस्टम लगाया जा रहा है। मल्टी स्टोरी में जो बड़ी फायर इक्यूमेंट मशीने होती है उसी तरह जिला अस्पताल को भी फायर सुरक्षा को लकर लैस किया जा रहा है। भोपाल की कंपनी काम कर रही है। छह से आठ महिनों में काम पूरा कर लिया जाएगा। इस प्रोजेक्ट के बाद आगजनि पर त्वरित काबू कर लिया जा सकेगा।
फायर एक्सटिंग्युशर की ट्रेनिंग हम लोग नपा के थ्रू या हमारे जो कुछ डाक्टर ट्रेनर्स है, उनके थ्रू ट्रेनिंग नर्स व स्टॉप को करवाते हंै। फस्ट फ्लोर में बच्चा वार्ड व एसएनसीयू है, जो कि अब सिफ्ट हो रहा है। बाकी पूरा अस्पताल नीचे है। आगजनिक की संभावना बहुत कम है। सवा करोड़ लगाया जा रहा फायर सेफ्टी सिस्टम के बाद त्वरित में आगजनि पर काबू पाया जा सकेंगा।
डॉ निलय जैन, सिविल सर्जन जिला अस्पताल