सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में लंबे समय से नौकरियों में आरक्षण देने के लिए एससी-एसटी वर्ग को सब कैटेगरी में रिजर्वेशन दिए जाने की मांग का मामला लंबित चल रहा था। इसपर सुप्रीम कोर्ट ने एक अगस्त को बड़ा फैसला सुनाया। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने 2004 के अपने पुराने फैसले को पलट दिया है और पंजाब अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग अधिनियम, 2006 और तमिलनाडु अरुंथथियार अधिनियम पर अपनी मुहर लगा दी। इसके साथ ही कोटा के अंदर कोटा (सब कैटेगरी में रिजर्वेशन) को मंजूरी दे दी। साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया था
इससे पहले 2004 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश सरकार से जुड़े मामले में फैसला दिया था कि राज्य सरकारें नौकरी में आरक्षण के लिए अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जातियों की सब कैटेगरी नहीं बना सकतीं, क्योंकि वे अपने आप में स्वजातीय समूह हैं। जबकि उस फैसले के खिलाफ जाने वाली पंजाब सरकार का तर्क था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ में सुप्रीम कोर्ट के 1992 के फैसले के तहत यह स्वीकार्य था। जिसने अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के भीतर सब कैटेगरी की अनुमति दी थी. पंजाब सरकार ने मांग रखी थी कि अनुसूचित जाति के भीतर भी सब कैटेगरी की अनुमति दी जानी चाहिए।
2020 में गठित संविधान पीठ ने किया पुनर्विचार
2020 में सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि इस पर बड़ी बेंच द्वारा फिर से विचार किया जाना चाहिए और सीजेआई के नेतृत्व में सात जजों की संविधान पीठ बना दी गई। इस बेंच ने जनवरी 2024 में तीन दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं और उसके बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। उसके बाद एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथल, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने फैसला सुनाया। हालांकि, जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस फैसले से असहमति जताई।
संविधान पीठ ने सुनाया ये फैसला
संविधान पीठ ने 6-1 के बहुमत से फैसला दिया कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटा बनाने का अधिकार है। यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं। ताकि सबसे जरूरतमंद को आरक्षण में प्राथमिकता मिल सके। राज्य विधानसभाएं इसे लेकर कानून बनाने में समक्ष होंगी। हालांकि, कोर्ट का यह भी कहना था कि सब कैटेगिरी का आधार उचित होना चाहिए। कोर्ट का कहना था कि ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति के भीतर किसी एक जाति को 100% कोटा नहीं दिया जा सकता है। इसके अलावा, SC में शामिल किसी जाति का कोटा तय करने से पहले उसकी हिस्सेदारी का पुख्ता डेटा होना चाहिए। यानी आरक्षण के मसले पर राज्य सरकारें सिर्फ जरूरतमंदों की मदद के लिए कानून बना सकती हैं। राजनीतिक लाभ के लिए किसी तरह की मनमानी नहीं कर सकती हैं और न ही भेदभावपूर्ण फैसला ले सकती हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध क्यों किया जा रहा?
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले पर दलित-आदिवासी संगठन भड़क उठे। यानी दलित-आदिवासी संगठन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ हैं। इसके पीछे उनका तर्क है कि अनुसूचित जाति और जनजाति को यह आरक्षण उनकी तरक्की के लिए नहीं बल्कि सामाजिक रूप से उनके साथ हुई प्रताड़ना से न्याय दिलाने के लिए है। तर्क यह भी दिया जा रहा है कि छुआछूत के भेद का शिकार हुईं इन जातियों को एक समूह ही माना जाना चाहिए। वे इसे आरक्षण को खत्म करने की साजिश बता रहे हैं। इसी के चलते दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) ने भारत बंद का आह्वान किया है।
दलित-आदिवासी संगठन का तर्क भी जान लीजिए
संगठन ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध करते हुए दावा किया है कि यह ऐतिहासिक इंदिरा साहनी मामले में कोर्ट के पिछले फैसले को कमजोर करता है, जिसने आरक्षण के लिए रूपरेखा स्थापित की थी। संगठन ने सरकार से नौकरियों और शिक्षा में दलित-आदिवासी समुदायों के लिए सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की मांग की है। सरकार से सुप्रीम कोर्ट के फैसले को खारिज करने का भी आग्रह किया है और एक नए केंद्रीय अधिनियम की मांग की है, जिसे संविधान की नौवीं अनुसूची द्वारा न्यायिक समीक्षा से संरक्षित किया जाए। इसके साथ ही सरकारी सेवाओं में एससी/एसटी/ओबीसी कर्मचारियों के जाति-आधारित आंकड़ों को तत्काल जारी करने की भी मांग की है ताकि उनका सटीक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जा सके। संगठन ने सरकार से सार्वजनिक सेवाओं में भी इन समुदायों के जाति-वार प्रतिनिधित्व पर आंकड़े जारी करने का आग्रह किया है। केंद्र और राज्य सरकार के विभागों के साथ-साथ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में सभी लंबित रिक्तियों को भरा जाए। निजी क्षेत्र में सरकारी सब्सिडी या निवेश से लाभ उठाने वाली कंपनियों को अपनी फर्मों में सकारात्मक नीतियां लागू करनी चाहिए।