पानी के संसाधन को देखते हुए नदी के किनारे बसने के लिए दुर-दुर से लोग आते थे। नदी किनारे गांव होना खुशकिस्मती माना जाता था, लेकिन अब ये नदियां गांवो के लिए अभिशाप बन गयी है। जनपद के अधिकांश जल श्रोत प्रदूषित हो चुके है। लोगों का कहना है कि सरकार की तरफ से दूषित होते जल को बचाने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे है। लोगों को मीठा पानी मिलना दूर की बात हो गई है। जिस दिन जल संकट का विस्फोट इस जनपद में होगा उन दिन बहुत देर हो चुकी होगी। एक्सपर्ट की माने तो अभी से ही सरकार और आमलोगों को पानी को बचाने के लिए उपाय करने होंगे। हालांकि दोआबा समिति के अध्यक्ष चंद्रवीर सिंह तोमर इस मुद्दे पर कार्य कर रहे है। साथ ही ये एनजीटी में भी आवाज उठा रह है।
चंद्रवीर सिंह राणा ने बताया कि यूपी के छह जिलों के सैकड़ों गांवों में हजारों लोग जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं, अगर ऐसा होता तो गांव के लोग नदी का पानी पीने के बदले कुएं, ट्यूबवेल या हैंडपंप का पानी पी सकते थे। लेकिन जहरीला पानी जमीन के नीचे तक पहुंच चुका है। अब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा, हर घूंट के साथ जहर उनके शरीर में जा रहा है। उन्होंने बताया कि पानी में पारा, कैडमियम, सल्फाइड, क्लोराइड जैसे जानलेवा हैवी मेटल काफी ज्यादा मात्रा में निकल रहे है। जिसके कारण गावों के हैंडपंप का पानी जहरीला हो चुका है।
जांच में आया था मीठे जहर का सच जनवरी 2018 में एनजीटी ने पानी की जांच की। साथ ही कंपनियों से निकलने वाले कचरे की जांच के आदेश दिए। जिसके बाद केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड ने इन प्रभावित जिलों में 168 जगहों से 545 पानी के सैंपल लिए थे। इसकी जांच में पाया गया कि सल्फेट, फ्लोराइड, तेल और ग्रीस के साथ साथ इसमें हैवी मेटल जैसे कैडमियम, कॉपर, सीसा, आयरन, निकल, जिंक, पारे और मैगनीज भारी मात्रा में मौजूद हैं।
क्या कहती है स्वस्थ्य रिपोर्ट पत्रिका संवाददाता ने जिला अस्पताल में डाॅ मनीष त्यागी से बात की तो उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च इन कैंसर ने एक अध्ययन में पाया है कि हैवी मेटल जैसे मर्करी, लेड, आर्सेनिक, क्रोमियम, निकिल, सल्फाइड को पहली कैटेगरी के मेटल में रखा गया है। इसके पर्याप्त प्रमाण उपलब्ध है कि इनसे कैंसर होता है, ये सारी चीजें फैक्ट्री के कचरों में भारी मात्रा में होता है। खेतों में इस्तेमाल की जाने वाली खादों में भी होता है और इनके जरिए भूमिगत पानी और खाने-पीने की चीजों में पहुंचता है। कैंसर के अलावा भी कई बीमारियां जैसे हार्ट से जुड़ी बीमारी, कई तरह के चर्म रोग और किडनी फेल होना शामिल है।
ये श्रोत बनेगे मौत का कारण बागपत में अनेक कपंनियां ऐसी है जिनसे जल प्रदुषण हो रहा है। इसमें कपडे की कैमिकल की कपंनियां प्रमुख है। जिनसे निकलने वाला पानी तीव्र गति से पानी के श्रोतों को प्रदुषित करता है। इसके साथ ही खेतों में कैमिकल खाद, गांव के गंदे को कचरे से भरे तालाब, गन्ना मिलों से निकलता पानी खतरे की घंटी है।