पहले चरण में जिन आठ सीटों पर मतदान होंगे, 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इन सभी पर जीत हासिल की थी। पूरे प्रदेश की बात करें, तो तब पार्टी को अकेले 71 सीटें हासिल हुई थीं। गठबंधन को मिला लें तो 73 सीटें मिली थीं। 2019 के चुनाव में इन सीटों पर सपा-रालोद और बसपा के महागठबंधन के सामने भाजपा कमजोर साबित हुई। वह इन आठ सीटों में से तीन ही जीत पाई थी। इस माहौल का असर यह हुआ कि सपा और बसपा ने पूर्वांचल में कई सीटें जीतीं और भाजपा का आंकड़ा 62 पर ही थम गया।
इस बार के चुनाव फिर पश्चिम से ही शुरू हो रहे हैं। पश्चिमी यूपी की आठ लोकसभा सीटों पर सबसे पहले चुनाव होने हैं। इनके लिए नामांकन आज यानी 20 मार्च से होगा। कई सीटों पर मुख्य दल तक प्रत्याशी नहीं तय कर पाए हैं। ऐसी सीटों पर चुनावी तस्वीर अभी तक धुंधली बनी हुई है। पिछले लोकसभा चुनाव से यहां के सियासी समीकरण काफी बदले हुए हैं, जिसका असर चुनावों पर नजर आने लगा है।
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इस चुनाव से इलाके के प्रमुख चेहरे रालोद नेता जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) का भी कद तय होगा। केंद्रीय मंत्री संजय बालियान (Sanjay Baliyan) की हैट्रिक के प्रयासों की परीक्षा होगी। यह चुनाव तय करेगा कि भाजपा नेता वरुण गांधी (Varun Gandhi) का सियासी भविष्य आगे कैसा होगा? नहटौर के विधायक ओम कुमार संसद पहुंच पाएंगे या नहीं, यह फैसला भी यह चुनाव करेगा।पश्चिमी यूपी का इलाका किसान और जाट नेता अजित सिंह (Ajeet Singh) के प्रभाव वाला माना जाता है। वे हारें या जीतें, लेकिन उन्हें साथ लेकर चलने वाले दल हमेशा अपने को फायदे में मानते रहे हैं। अजित सिंह भी अपनी इस अहमियत की भरपूर सियासी कीमत वसूलते रहे हैं। इस बार यह चुनाव अजित सिंह के बिना हो रहा है, अजित के उत्तराधिकारी जयंत चौधरी को साधने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष दोनों ही ओर से अंत तक कोशिश हुई। आखिरकार, सत्तापक्ष का पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) को भारत रत्न देने का दांव कारगर साबित हुआ और जयंत पिछले चुनाव का जाट दलित मुस्लिम का समीकरण छोड़कर भाजपा के साथ आ गए हैं। यह चुनाव तय करेगा कि जयंत का फैसला कितना सही है।
पहले चरण की जिन सीटों पर चुनाव होने हैं, उनमें कभी समाजवादी पार्टी के मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खां का रामपुर भी आता है। पिछले पांच सालों में तमाम उतार-चढ़ाव का सामना करने के बाद आजम खां को जेल जाना पड़ा, सजा हुई और उनकी विधायकी चली गई। उपचुनाव हुआ, जिसमें भाजपा के घनश्याम लोधी सांसद हो गए। सपा ने अभी तक रामपुर सीट पर प्रत्याशी घोषित नहीं किया है। भाजपा ने लोधी को फिर से प्रत्याशी बना दिया है।
भाजपा और रालोद गठबंधन में रालोद को दो सीटें बिजनौर और बागपत मिली हैं। इसमें बिजनौर में पहले चरण में ही चुनाव होना है। 2019 में सपा-बसपा और रालोद गठबंधन में बिजनौर सीट बसपा के पास थी और उसके प्रत्याशी मलूक नागर चुनाव जीते थे। इस बार रालोद ने चंदन चौहान और सपा ने यशवीर सिंह को प्रत्याशी बनाकर अपना प्रचार अभियान तेज कर दिया है। बसपा अकेली है और अभी तक प्रत्याशी का आधिकारिक एलान बाकी है। 2019 के तीनों मित्र दलों के प्रत्याशी इस बार अलग-अलग एक दूसरे के सामने ताल ठोकने वाले हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव में यहां से केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान और रालोद मुखिया अजित सिंह आमने-सामने थे। बालियान लगातार दूसरी बार जीते थे। अजित सिंह नहीं रहे और बदले हालात में रालोद और भाजपा एक साथ हैं ऐसे में इस बार रालोद अपनी भी ताकत वालियान के साथ लगाएगी। सपा ने पूर्व सांसद हरेंद्र मलिक को प्रत्याशी बनाया है। बसपा प्रत्याशी का एलान बाकी है।
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पिछले चुनाव में महागठबंधन के जरिए सहारनपुर सीट पर बसपा ने कब्जा जमाया था। बसपा के हाजी फजलुर्रहमान भाजपा के राघव लखनपाल को हराकर चुनाव जीते थे। इस बार सपा-कांग्रेस गठबंधन में यह सीट कांग्रेस के खाते में गई है। भाजपा, कांग्रेस व बसपा में किसी ने भी अभी यहां से प्रत्याशी का एलान नहीं किया है।
2019 के चुनाव में भाजपा के प्रदीप कुमार चौधरी यहां से सपा की तबस्सुम बेगम को हराकर चुनाव जीते थे। इस चुनाव में पूर्व सांसद मुनव्वर हसन और तबस्सुम बेगम की बेटी इकरा हसन को सपा ने प्रत्याशी बनाया है। इकरा के भाई नाहिद हसन विधायक हैं। यहां से बसपा प्रत्याशी का इंतजार है।
बसपा के गिरीश चंद्र महागठबंधन से पिछला चुनाव जीतकर सांसद बने थे। बसपा ने अभी तक किसी का टिकट फाइनल नहीं किया है। इस बार सपा ने सेवानिवृत्त जज मनोज कुमार और भाजपा ने नहटौर से विधायक ओम कुमार को प्रत्याशी बनाया है। दोनों ही दलों से इस बार नए प्रत्याशी मैदान में हैं।
सपा के एसटी हसन (ST Hassan) भाजपा के कुंवर सर्वेश कुमार को हराकर चुनाव जीते थे। इस सीट पर किसी भी पार्टी ने अपने पत्ते अभी तक नहीं खोले हैं। सपा-कांग्रेस गठबंधन में यह सीट सपा के पास है, जबकि भाजपा-रालोद गठबंधन में भाजपा के पास बसपा अकेले है।
पिछला चुनाव भाजपा से वरुण गांधी जीते थे। लेकिन, कुछ ही दिनों बाद से उनके तेवर बदल गए। वह कई बार अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़े करते और उससे सवाल करते नजर आए। अभी तक इस सीट पर भाजपा ने पत्ते नहीं खोले हैं। सपा और बसपा भी अभी चुप्पी साधे हुए है।