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आजमगढ़

तो क्या आजमगढ़ से समाप्त हो गया बाहुबली का राजनीतिक भविष्य

लगतार दो चुनाव न हारने का रिकार्ड भी नहीं बचा पाए बाहुबली।
जीवन में पहली बार जब्त हुई रमाकांत यादव की जमानत।

आजमगढ़May 25, 2019 / 02:23 pm

रफतउद्दीन फरीद

Ramakant yadav

रमाकांत यादव

रणविजय सिंह
आजमगढ़. पूर्वांचल के बाहुबलियों में से एक जिन्हें यादव शेरे पूर्वांचल के नाम से संबोधित करता है उसका यह हस्र होगा किसी ने सोचा नहीं था। कांग्रेस जे से राजनीतिक शुरूआत कर कांग्रेस तक पहंचे रमाकांत यादव कभी लगातार दो चुनाव नहीं हारे लेकिन मोदी की लहर में 2019 में यह बाहुबली अपनी जमानत तक नहीं बचा पाया। ऐसे में सवाल उठने लगा है कि क्या यह रमाकांत यादव के राजनीतिक कैरियर का अंत है। कारण कि बीजेपी में योगी उन्हें पसंद नहीं करते और सपा बसपा पहले ही बाहुबली को नकार चुकी है। रहा सवाल कांग्रेस का तो उसका यूपी में इतना जनाधार नहीं है कि जिससे दम पर रमाकांत सांसद अथवा विधायक बन सके।


बता दें कि रमाकांत यादव ने राजनीतिक सफर की शुरूआत 1984 में कांग्रेस जे से की थी। वर्ष 1984 में रमाकांत इसी पार्टी से पहली बार फूलपुर विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए। वर्ष 1993 में सपा के अस्तित्व में आने के बाद वे सपा में शामिल हो गये। इन्होंने कई बार विषम परिस्थितियों में भी सपा का जीत दिलायी। वे चार बार विधायक चुने गए। इसके बाद दो बार सपा से ही सांसद चुने गए लेकिन पूर्व सांसद पार्टी की गुटबाजी और अंतरकलह के शिकार हुए। परिणाम रहा कि इन्होंने अपना रास्ता अलग कर लिया और वर्ष 2004 का लोकसभा चुनाव बसपा के टिकट पर लड़े और जीत हासिल की। लेकिन बसपा में भी ज्यादा दिन नहीं रहे पाये और 2008 में बीजेपी में शामिल हो गए। वर्ष 2008 के उपचुनाव में बीजेपी ने उन्हें आजमगढ़ से चुनाव लड़ाया लेकिन रामाकांत यादव चुनाव हार गए। इसके बाद वर्ष 2009 के आम चुनाव में पहली बार रमाकांत यादव ने आजमगढ़ सीट पर कमल खिला दिया।

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सपा मुखिया के खिलाफ रमाकांत यादव को मैदान में उतारा। रमाकांत चुनाव भले ही न जीते हो लेकिन उन्होंने सपा को जीत का जश्न मनाने का मौका भी नहीं दिया। कारण कि हार जीत का अंतर मात्र 63 हजार मतों का था। वर्ष 2019 के चुनाव में रमाकांत यादव आजमगढ़ से टिकट की दावेदारी लेकिन सवर्णो के खिलाफ बयानबाजी के चलते योगी ने रमाकांत के टिकट का विरोध किया। इसके बाद बीजेपी ने निरहुआ को अखिलेश के खिलाफ मैदान में उतार दिया। इससे नाराज होकर रमाकांत यादव कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस से उन्हें भदोही से मैदान में उतार लेकिन करीब तीन लाख यादव मतदाता होने के बाद भी रमाकांत यादव 25 हजार पर सिमट गए।

गौर करें तो रमाकांत यादव सपा, बसपा, भाजपा सहित सभी प्रमुख दलों से होते हुए कांग्रेस में पहुंचे है। 2019 में उन्होंने बसपा और सपा में भी शामिल होने का प्रयास किया था लेकिन दोनों ही दलों ने उन्हें पार्टी में लेने से मना कर दिया था। भाजपा में भी उनके लिए दरवाजा बंद माना जा रहा है। कारण कि निरहुआ का प्रदर्शन रमाकांत से कहीं बेहतर रहा है। वह बीजेपी के लिए पूर्वांचल में स्टार प्रचारक भी शामिल हुआ है। ऐसे में माना जा रहा है कि अब रमाकांत की राह आने वाले दिनों में आसान नहीं होने वाली है। कुछ लोगों तो इसे रामाकांत यादव की राजनीतिक कैरियर का अंत मान रहे हैं। कारण कि इस चुनाव से यह संदेश गया है कि रमाकांत यादव का आजमगढ़ के बाहर अपना कोई जनाधार नहीं है।

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