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..तो इसलिए अयोध्या आए थे उद्धव ठाकरे, सामने आए 5 बड़े कारण, शिवसेना की हिंदुत्व की छवि खतरे में..

-शिवसेना के 18 सांसदों के साथ अयोध्या आने के पीछे छवि बचाने की चिंता-भाजपा की प्रचंड जीत ने मोदी को बनाया हिंदुत्व का सबसे बड़ा ब्रांड-मंदिर निर्माण के लिए दबाव बनाने की नीति पर काम कर रही शिवसेना-सांसदों के शपथ लेने के पहले मंदिर निर्माण की शपथ लेने की कवायद

अयोध्याJun 17, 2019 / 05:46 pm

Abhishek Gupta

Modia uddhav thackeray

Modia uddhav thackeray

अयोध्या. शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अपने सभी 18 सांसदों के साथ रविवार को अयोध्या पहुंचे। यहां उन्होंने श्रीराम में आस्था जताकर लाखों हिंदुओं के दिलों को छूने की कोशिश की। उनकी इस यात्रा के बाद राजनीति गरम गई है। राम मंदिर के पक्षकारों समेत अयोध्या के साधु-संतों ने शिवसेना की इस कवायद को राजनीतिक ड्रामा करार दिया है। राजनीतक विश्लेषक ठाकरे की अयोध्या यात्रा के कई मायने निकाल रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि 8 महीनों के भीतर उद्धव ठाकरे की यह दूसरे यात्रा बिना किसी उद्येश्य के कैसे हो सकती है? वह भी अकेले नहीं बल्कि पार्टी के सभी 18 सांसदों के साथ। आखिर शिवसैनिकों को राम से एकाएक प्रेम क्यों हो गया। सीधा सा जवाब है महाराष्ट्र में आसन्न विधानसभा चुनाव में राम मंदिर निर्माण मुद्दे को गरमाने के साथ ही शिवसेना की कोर हिंदुत्व वाली पार्टी की छवि को बनाए रखने की चिंता ही शिवसैनिकों को अयोध्या खींच लायी।
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लाखों उत्तर भारतीयों के हितों की चिंता-
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे पिछले 8 महीने में 2 बार अयोध्या का दौर कर चुके हैं। वे इसके पहले 25 नवम्बर 2018 को अयोध्या आए थे तब लोकसभा चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो चुकी थी। वहीं इस बार साल के अंत में महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हैं, जहां बड़ी संख्या में उत्तर भारतीय रहते हैं, यह भगवान श्रीराम में आस्था रखते हैं। अपने लाखों उत्तर भारतीय मतदाताओं के बीच राममंदिर निर्माण का संदेश देने के मकसद से ही उद्धव दोबारा अयोध्या आए।
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Uddhav Thackeray
राम मंदिर मुद्दे का महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभाव-
उद्धव ठाकरे यह भलीभांति जानते हैं कि राम मंदिर का मुद्दा भले ही 4 दशक पुराना हो लेकिन उससे किनारे नहीं किया जा सकता। उन्हें भली प्रकार मालूम है कि धर्म को भले ही राजनीति से अलग करने की बात होती है, लेकिन धर्म के बिना राजनीति होती नहीं। शायद यही वजह है कि वह विधानसभा चुनावों में राम मंदिर का मुद्दा महाराष्ट्र में जिंदा रखना चाहते हैँ। क्योंकि महाराष्ट्र के कई शहरों में उत्तर भारतीयों की अच्छी खासी संख्या है दूसरे 1992 में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाबत हुई हिंसा में सबसे ज्यादा मुंबई ही प्रभावित हुई थी। ऐसे में ठाकरे के लिए अयोध्या मुद्दा महाराष्ट्र के चुनावों में अच्छा खासा असर डाल सकता है।
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Uddhav Thackeray
5. ठाकरे जानते हैं मोदी हैं हिंदुत्व का बड़ा चेहरा-
लोकसभा चुनाव में गठबंधन कर शिवसेना ने 18 सीटें जीतीं, लेकिन भाजपा ने 23 सीटों पर कब्जा कर लिया। कभी शिवसेना देश में हिंदुत्व के नाम पर बनी सबसे बड़ी पार्टी मानी जाती थी। लेकिन इस चुनाव में पीएम मोदी हिंदुत्व के सबसे बड़े ब्रांड बनकर उभरे हैं। ऐसे ठाकरे यह भलीभांति समझ गए हैं कि मोदी हिंदुत्व की राजनीति के अब सबसे बड़े प्रतीक बन गए है। अब हिंदुत्व के नाम पर अलग राजनीति नहीं की जा सकती। यही कारण है कि शिवसेना की विचारधारा को जिंदा रखने के लिए भी शिवसेना का अयोध्या दौरा जरूरी था।
4. राम मंदिर निर्माण का ठाकरे लेना चाहते हैं श्रेय-
अयोध्या में सक्रियता दिखाकर उद्धव ठाकरे राम मंदिर निर्माण का श्रेय भी लेना चाहते हैं। उनके दौरान श्रेय की इस कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि वे कभी भी हिंदुत्यव की राजनीति में नहीं रहे बल्कि सदैव मराठियों के बारे में ही सोचा है, लेकिन अयोध्या के दौरे कर वह इस आधार को तैयार कर रहे हैं कि जब भी मंदिर बने तो वह दावा कर सके कि उनके भाजपा सरकार पर दबाव बनाने के कारण ही यह संभव हो पाया है। साथ ही यह दिखा सके कि वह भी हिंदुत्व के प्रति आस्था रखते हैं।
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5. शिवसेना चाहती है भाजपा पर दबाव बनाना-
राजनीति विश्लेषकों का मानना है कि अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे पर आक्रामक होकर शिवसेना भाजपा पर दबाव बनाना चाहती है। यह दबाव लोकसभा चुनाव में काम कर चुका है। हालांकि, बताया जा रहा है कि दोनों ही पार्टियां महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ेगी, लेकिन शिवसेना का प्रयास है कि वह भाजपा से ज्यादा सीटे तालमेल में हथिया सके। यही वजह है शिवसेना के सभी सांसद संसद की शपथ लेने से पहले रामलला का दर्शन कर राममंदिर निर्माण की शपथ लेने पहुंचे थे। अब यह तो आने वाला वक्त बताएगा कि शिव पर राम कितने भारी पड़ते हैं।

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