संयुक्त राष्ट्र ने भी निंदा की इस मामले में संयुक्त राष्ट्र ने भी निंदा की है। लिंंग को अनिवार्य रूप से बदलने की शर्त की आलोचना की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पिछले साल मानसिक रोगों के रूप में ट्रांस लोगों को वर्गीकृत करना बंद कर दिया था, जो कि कलंक को समाप्त करने में एक बड़ी सफलता के रूप में कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए बदलाव में था। ट्रांसजेंडर ताकक्यूटो सूई ने 2014 में एक क्लिनिक में अपना हार्मोनल उपचार कराना शुरू दिया है। इस दौरान उनकी तबीयत भी बिगड़ी। इसे लेकर उनके आसपास रहने वाले लोगों ने काफी सहयोग दिया। मगर सरकार का रवैया इस मामले में कठोर बना रहा। उनका कहना कि जापान में यह सिस्टम बदलना होगा ताकि ट्रांसजेंडर लोगों को वही अधिकार मिलें जो अन्य लोगों को हैं। उन्होंने जापानी प्रधानमंत्री के कार्यालय में ईमेल भेजा, मगर इसका कोई जवाब नहीं आया।
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रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से मिलेंगे उत्तर कोरिया के शासक किम जोंग-उन ट्रांसजेंडर होना काफी हद तक वर्जित है लिंगायत विशेषज्ञों ने कहा कि जापान के एलजीबीटी का कानून 1880 के बाद से समलैंगिक यौन संबंधों को लेकर कई एशियाई देशों की तुलना में अपेक्षाकृत उदार है। लेकिन खुले तौर पर समलैंगिक या ट्रांसजेंडर होना काफी हद तक वर्जित है। इसलिए यहां पर इनकी संख्या को लेकर कोई विश्वसनीय आंकड़ नहीं है। टोक्यो की ह्यूमन राइट्स वॉच की डायरेक्टर काने डोई ने कहा कि ट्रांसजेंडर लोगों को समाज में स्वीकार किया जाना बहुत मुश्किल है। यहां एलजीबीटी में लोगों को भेदभाव या उत्पीड़न से बचाने के लिए कोई व्यवस्था या कानून भी नहीं है। जापानी लोगों के लिए यह जानना बहुत मुश्किल है कि वे ट्रांस लोगों के साथ रह रहे हैं क्योंकि वे भूमिगत हैं।
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