चीनी कंपनियों को निवेश के लिए सुरक्षा मंजूरी नहीं मिल रही है। ड्रैगन भारत पर दबाव बना रहा है कि नियमों को लचीला बनाए। सुरक्षा मंजूरी में देरी की वजह से कई कंपनियां प्रस्ताव वापस लेने की तैयारी में हैें।
कठोर शर्तों को पूरा करने में सक्षम नहीं ऐसा कहा जा रहा है कि चीनी कंपनियों को महसूस हो रहा है कि कि वे कठोर शर्तों को पूरा करने में सक्षम नहीं हैं। भारत सरकार किसी भी कंपनी को सुरक्षा मंजूरी देने से पहले उसके चीनी सुरक्षा प्रतिष्ठान से संबंधों की पड़ताल कर रही है। चीन की चालबाजियों को भांपने के बाद भारत ने व्यापार के मोर्चे पर ज्यादा सख्ती दिखाने का फैसला लिया है। गौरतलब है कि अप्रैल माह से ही चीन की कई कंपनियों को भारत मे निवेश को लेकर सुरक्षा मंजूरी नहीं मिल रही है।
भारत चीन से ठोस कदम उठाने को कह सकता है भारत व्यापार के मोर्चे पर असंतुलन कम करने को लेकर ठोस कदम उठाना जारी रखेगा। व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत चीन से ठोस कदम उठाने को कह सकता है। वहीं अगर चीन भरोसा कायम करने को लेकर कोई ठोस कदम नही उठाता है तो उसके साथ संबंध और खराब हो सकते हैं।
द्विपक्षीय रिश्ते सुधर पाएंगे विशेषज्ञों का कहना है कि सीमा पर चीन को अपनी स्पष्टता बतानी होगी। इसी से द्विपक्षीय रिश्ते सुधर पाएंगे। गौरतलब है कि अप्रैल में भारत से सटे देशों से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए पूर्व में सरकार की मंजूरी को जरूरी करने के बाद से चीन के लगभग 200 निवेश प्रस्ताव गृह मंत्रालय (एमएचए) से सुरक्षा मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। इनको अभी तक मंजूरी नही मिली है।
गौरतलब है कि गलवान घाटी (Galwan Valley) में चीन और भारतीय सैनिकों की झड़प के बाद से दोनों देशों में तनाव बरकरार है। इस झड़प में 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे। सीमा पर अभी भी तनाव बरकरार है। कई मोर्चों पर चीनी सेनाएं अभी भी भारतीय सेनाओं को चुनौती दे रही हैं। ऐसे में भारत चीन पर व्यापार के जरिए दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है।