सहसपुर के रहने वाले जुम्मा बतातें हैं कि इस गांव में क्रिकेट तौसीफ़ ही लाए थे। उस दौर में हम रेडियो पर कमेंट्री सुना करते थे। वहीं से क्रिकेट का शौक पैदा हुआ। तौसीफ़ क्रिकेट की किट ले आए और गांव में पिच बना ली गई। उन्होंने बताया कि सिम्मी बहुत छोटा था, तब से उसे एक्स्ट्रा फील्डर के रूप में खिलाते थे, वह बहुत तेज़ दौड़ता था। फिर उसने गेंदबाज़ी शुरू की। अगर कोई साथ खेलने के लिए नहीं होता था तो वो अकेले ही गेंदबाज़ी किया करता था।
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गांवों तक पहुंच गया था शमी का नामसहसपुर अलीनगर निवासी जैद बताते हैं मैं उस समय 11 वर्ष का था। गांव में क्रिकेट टूर्नामेंट चल रहा था। सिम्मी भाई की गेंद में इतनी रफ्तार और उछाल थी कि कीपर को विकेट से बहुत दूर खड़े होना पड़ता था। उस टूर्नामेंट में हर गेंदबाज को लंबे लंबे छक्के खाने पड़े थे, लेकिन सिम्मी भाई की वजह से हमारे गांव की टीम मैच जीत गई थी। उन्होंने तीन विकेट लिए थे। तब से उनका नाम आसपास के गांवों में हो गया। खिलाड़ी चर्चा करते थे कि इसके ओवर में आराम से खेलना है, बाकी गेंदबाजों को देखेंगे।
सहसपुर अलीनगर की पुरानी पिच जहां शमी ने अपने बचपन में गांव की टीम को टूर्नामेंट जिताए हैं। वहां अब कोई नहीं खेलता। उस पिच के आसपास कब्रिस्तान, खेत व झाड़ झंकाड़ हैं। गांव के युवाओं में इस पिच की चर्चा एक बार फिर जीवित हो गई है। हालांकि नया मैदान पुरानी पिच से दो किलोमीटर दूर है।