घटना को सिलसिलेवार साबित नहीं कर पाया अभियोजन पक्ष: SC
जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने आदेश सुनाते हुए कहा कि यह एक परिस्थितिजन्य साक्ष्य का मामला है और अभियोजन पक्ष घटनाओं को सिलसिलेवार साबित नहीं कर पाया इसलिए आरोपी विश्वजीत कर्बा मसलकर की अपील स्वीकार की गई।
सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क पर मृत्युदंड की सजा कर दी खारिज
हाईकोर्ट ने सैशन कोर्ट की ओर से मसलकर को सुनाई मृत्युदंड की सजा की पुष्टि करते हुए कहा था कि परिवार को खत्म करके आरोपी ने समाज की बुनियादी नींव को तोड़ने की कोशिश की है। इस मामले ने अदालत की न्यायिक अंतरात्मा को झकझोर दिया इसलिए इसे दुर्लभतम मामले के रूप में माना जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा कि मृत्युदंड की सजा के लिए दुर्लभतम मामले की जांच समाज की धारणा पर निर्भर करती है और दृष्टिकोण समाज केंद्रित होना चाहिए न कि जज केंद्रित।
क्या रहा पूरा मामला?
ट्रायल कोर्ट के बाद जब हाईकोर्ट ने भी कर्बा मसलकर के खिलाफ मृत्युदंड की सजा को बरकरार रखा तब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की शरण ली। कर्बा मसलकर पुणे की एक कंपनी में काम करता था। उसने पुलिस को यह बताया था कि उसके घर में चोरी हुई और उसी चोरी की दौरान उसकी मां, पत्नी और दो वर्षीय बेटी की मौत हो गई। इस घटना में उसने अपने पड़ोसी के घायल होने की बात भी पुलिस को बताई थी। थाने में इस मामले की शिकायत आईपीसी की धारा 302 और 397 के तहत दर्ज कर ली गई। पुलिस ने तहकीकात के दौरान यह पाया कि घर में कुछ भी चोरी नहीं हुआ और ना ही किसी के जबरन प्रवेश करने की कोशिश की। इसके बाद पुलिस के शक की सुई पूरी तरह से मसलकर पर आ टिकी। पुलिस को भी शक भला क्यों ना हो? पुलिस को अपने जांच के दौरान पता चला कि मसलकर के एक अन्य महिला से विवाहेतर संबंध भी हैं। पुलिस के इस तहकीकात के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने उसे हत्या का दोषी पाया और मृत्युदंड की सजा सुना दी। मसलकर ने हाई कोर्ट में सजा के खिलाफ अपील की और वहां भी सजा बरकरार रखी गई। अब उसके पास सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाने के सिवाय कोई और चारा नहीं बचा था। मसलकर की किस्मत देखिए कि सुप्रीम कोर्ट ने उसके खिलाफ मृत्युदंड की सजा को खारिज कर उसे बरी कर दिया।