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अमरीका

क्या पाकिस्तान के लिए आसान होगा तालिबान शांति वार्ता को जारी रखना?

डोनाल्ड ट्रंप से किए वादे को किस हद तक निभा पाएंगे पाक पीएम
तालिबान के प्रवक्ता ने कहा अगर निमंत्रण दिया गया तो वह पाकिस्तान जाएंगे

Jul 28, 2019 / 05:46 pm

Mohit Saxena

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान
तेहरान। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने अपनी अमरीकी यात्रा के दौरान कई वादे किए थे। उन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से प्रतिबद्धता जताई थी कि वह अफगानिस्तान में तालिबान के साथ शांति वार्ता को तैयार हैं। प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि जब वो पाकिस्तान वापस जाएंगे तो तालिबान से वार्ता की पेशकश रखेंगे। मीडिया के अनुसार तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन का कहना है कि अगर उन्हें पाकिस्तान की तरफ से औपचारिक निमंत्रण दिया गया तो वह पाकिस्तान जाएंगे।
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taliban
वहीं दूसरी तरफ तालिबान ने अफगान सरकार से सीधी बातचीत करने से इनकार कर दिया है। उसका कहना है कि जब तक अमरीका की सेना अफगानिस्तान से नहीं जाती तब तक वार्ता मुश्किल होगी। तालिबान अफगान सरकार के साथ किसी भी तरह की सीधी बातचीत नहीं करना चाहता। तालिबान ने अफगान सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री के उस बयान को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि अगले दो हफ्तों के भीतर बैठक करने की योजना है।
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गौरतलब है कि अफगान तालिबान पर पहले से ही कई आरोप लग चुके है कि वह पाक समर्थित है। ऐसे में अमरीका चाहता है कि पाकिस्तान इस वार्ता में मध्यस्थता की भूमिका अदा करे। तालिबान के प्रवक्ता सुहैल शाहीन के अनुसार वो लोग जिनके पास तालिबान के खिलाफ कोई और सुबूत नहीं हैं, वही उनपर इस तरह के बेबुनियाद आरोप लगाएंगे। उनका कहना है कि पाकिस्तान के साथ वह बातचीत करने लिए तैयार हैं। उनके संगठन पाक समर्थित नहीं कहना चाहिए। हालांकि अमरीका के दौरे पर प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि उनसे कुछ माह पहले भी तालिबान का प्रतिनिधि मंडल मिलना चाहता था लेकिन अफगान सरकार की चिंता को देखकर उन्होंने ये वार्ता रद्द कर दी।
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अफगानिस्तान के पास एक मात्र विकल्प

इन परिस्थितियों में अमरीका और अफगानिस्तान के पास एक मात्र विकल्प पाकिस्तान है। वह इस वार्ता की रूपरेखा तय कर सकता है। अमरीका चाहता है कि उसके अफगानिस्तान से निकलने से पहले इस समस्या का हल हो जाए ताकि दोबारा से आतंकवाद से लड़ने के लिए उसे मशक्कत नहीं करनी पड़े।इसके अलावा अमरीका अफगानिस्तान में अपना प्रभुत्व भी कायम करना चाहता है। अफगान सरकार में तालिबान की भागीदारी को भी वह कम रखना चाहता है ताकि अफगानिस्तान के नियंत्रण की डोर उसके हाथ में ही रहे।

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