उनका कहना है कि एक बाघिन चार साल की आयु से शावक देना शुरू करती हैं जो अपनी आयु 14 साल तक करीब चार से पांच बार मां बनती है। जीवन में आठ से दस शावक तक देती हैं। करीब ढाई साल तक मां अपने शावक के साथ रहती है, उसके बाद शावक साथ छोड़ जाते हैं।
जानकारों का कहना है कि बाघिन गर्भवती होने के बाद ऐसी जगह तलाशती हैं, जहां वह सुरक्षित माहौल में शावक दे सकें। उनके आसपास किसी की चहलकदमी न हो। यदि उन्हें सुरक्षित जगह नहीं मिल पाती तो वह भ्रूण भी गिरा देती हैं।
बाघिन एसटी-7 व एसटी-8 दोनों बहनें हैं। इनकी मां भी उम्र के आखिरी पड़ाव पर है जो सरिस्का में एक बाड़े में रह रही है। उसकी मां के चार शावक हैं। जिसमें ये दोनों बहनें भी हैं। ऐसे में अनुवांशिक बांझपन की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। इसलिए इनके बांझपन के कारण तलाशे जा रहे हैं। दोनों बहनों की दादी रणथंभौर में थीं, जिसका नाम मछली था। वहीं से उसकी बेटी एसटी-2 यहां लाई गईं, जिसका इलाज चल रहा है। एसटी-9 ने भी एक ही बार शावक दिए हैं। अब यह अपना कुनबा नहीं बढ़ा पा रही हैं।
बाघिन की ब्रिड के मुताबिक टाइगर न मिलना भी एक कारण हो सकता है। पांडूपोल एरिया में एसटी-8 का ठिकाना है। ऐसे में मंगलवार व शनिवार को यहां गाडिय़ों की आवाजाही खोली जाती है। इसके चलते भी बाघिन गर्भवती नहीं हो पा रही। गर्भाश्य में बीमारी आदि हो सकती है या फिर शारीरिक संरचना में कुछ बदलाव हो सकता है।
पेट्रोल व डीजल के वाहनों की आवाजाही अधिक होने के चलते टाइगर आदि प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में प्रस्ताव है कि यहां इलेक्ट्रिक व्हीकल चलाए जाएं। इस पर भी वन विभाग काम कर रहा है। मुख्य वन संरक्षक अलवर आरएन मीणा का कहना है कि हमने वन विभाग मुख्यालय को पत्र लिखा है कि दूसरे राज्यों के बाघ यहां लाए जाएं तो इससे ब्रिङ्क्षडग आदि बेहतर होगी। इसके अलावा सरिस्का में इलेक्ट्रिक वाहन चलाने की भी योजना है। इस पर काम चल रहा है।