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अलवर

सरिस्का की चार बाघिनें ऐसी, जो नहीं बन पाई मां, इन पर चल रहा रिसर्च

अलवर जिले स्थित सरिस्का अभयारण्य में भी रणथम्भौर अभयारण्य की तरह ही बाघों की दहाड़ सुनाई तो दे रही है, लेकिन इस बीच दुख इस बात को लेकर भी है कि यहां चार बाघिनें ऐसी हैं, जिनकी गोद अभी तक हरी नहीं हुई और ये आयु में 12 साल की हो चुकी है। बाघिनों में बांझपन न बढ़े इसे लेकर वन विभाग ने दूसरे राज्यों से बाघ लाने की कवायद में हैं।

अलवरJun 14, 2023 / 01:12 am

Ramkaran Katariya

Sariska Sanctuary

सरिस्का में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है,

अलवर. सरिस्का में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा है, लेकिन चार बाघिनें ऐसी भी हैं जो अब तक मां नहीं बन पाई। इन पर रिसर्च चल रहा है। प्रथम ²ष्टया ये सामने आया है कि यदि दूसरे राज्यों से ब्रिङ्क्षडग के लिए बाघ लाए जाते हैं तो यहां शावकों की दहाड़ और बढ़ सकती है। इसका प्रस्ताव वन विभाग ने मुख्यालय भेज दिया है। वहीं बाघिन के मां नहीं बनने के कुछ अन्य कयास भी लगाए जा रहे हैं, जिस पर सरिस्का प्रबंधन काम कर रहा है।
सरिस्का एक समय बाघ विहीन हो गया था, लेकिन विभाग के प्रयास रंग लाए और अब संख्या 28 तक पहुंच गई है। कुछ बाघिनों ने शावक दिए। शावकों की दहाड़ पूरे इलाके में गूंजी, लेकिन कुछ बाघिनें मां नहीं बन पाई। बाघिन एसटी-3 बुजुर्ग होकर दम तोड़ गई। उसकी गोद भी सूनी रही। इसका ठिकाना टहला क्षेत्र के रिछोंड़ा चौकी भगानी के आसपास था। इसी तरह बाघिन एसटी-5 भी शावक नहीं दे पाई। इसी तरह बाघिन एसटी-7 व एसटी-8 बहनें हैं। ये 12 साल बाद भी मां नहीं बन पाईं। यह दोनों बाघिनें उम्र के आखिरी पड़ाव पर हैं। बांझपन का पता लगाने के लिए यहां वाइल्ड लाइफ इंस्टीट््यूट ऑफ इंडिया, देहरादून की टीम भी पहुंची, जो शोध कर रही है। अभी इसके नतीजे सामने नहीं आए हैं। सीनियर गाइड रामौतार मीणा कहते हैं कि बाघिन एसटी-7 व एसटी-8 की साइङ्क्षटग अब कम हो गई है। बाहर ये कम ही निकल पा रही हैं। ये शर्मिली हैं।
चार साल की आयु में बन जाती है मां
उनका कहना है कि एक बाघिन चार साल की आयु से शावक देना शुरू करती हैं जो अपनी आयु 14 साल तक करीब चार से पांच बार मां बनती है। जीवन में आठ से दस शावक तक देती हैं। करीब ढाई साल तक मां अपने शावक के साथ रहती है, उसके बाद शावक साथ छोड़ जाते हैं।
गर्भवती बाघिन को नहीं दिखता सुरक्षित स्थान तो गर्भ से गिरा देती हैं भ्रूण
जानकारों का कहना है कि बाघिन गर्भवती होने के बाद ऐसी जगह तलाशती हैं, जहां वह सुरक्षित माहौल में शावक दे सकें। उनके आसपास किसी की चहलकदमी न हो। यदि उन्हें सुरक्षित जगह नहीं मिल पाती तो वह भ्रूण भी गिरा देती हैं।
इनकी मां ने दिए चार शावक
बाघिन एसटी-7 व एसटी-8 दोनों बहनें हैं। इनकी मां भी उम्र के आखिरी पड़ाव पर है जो सरिस्का में एक बाड़े में रह रही है। उसकी मां के चार शावक हैं। जिसमें ये दोनों बहनें भी हैं। ऐसे में अनुवांशिक बांझपन की संभावनाएं खत्म हो जाती हैं। इसलिए इनके बांझपन के कारण तलाशे जा रहे हैं। दोनों बहनों की दादी रणथंभौर में थीं, जिसका नाम मछली था। वहीं से उसकी बेटी एसटी-2 यहां लाई गईं, जिसका इलाज चल रहा है। एसटी-9 ने भी एक ही बार शावक दिए हैं। अब यह अपना कुनबा नहीं बढ़ा पा रही हैं।
बांझपन के ये माने जा रहे कारण
बाघिन की ब्रिड के मुताबिक टाइगर न मिलना भी एक कारण हो सकता है। पांडूपोल एरिया में एसटी-8 का ठिकाना है। ऐसे में मंगलवार व शनिवार को यहां गाडिय़ों की आवाजाही खोली जाती है। इसके चलते भी बाघिन गर्भवती नहीं हो पा रही। गर्भाश्य में बीमारी आदि हो सकती है या फिर शारीरिक संरचना में कुछ बदलाव हो सकता है।
ये भी उठाया जाएगा कदम
पेट्रोल व डीजल के वाहनों की आवाजाही अधिक होने के चलते टाइगर आदि प्रभावित हो रहे हैं। ऐसे में प्रस्ताव है कि यहां इलेक्ट्रिक व्हीकल चलाए जाएं। इस पर भी वन विभाग काम कर रहा है। मुख्य वन संरक्षक अलवर आरएन मीणा का कहना है कि हमने वन विभाग मुख्यालय को पत्र लिखा है कि दूसरे राज्यों के बाघ यहां लाए जाएं तो इससे ब्रिङ्क्षडग आदि बेहतर होगी। इसके अलावा सरिस्का में इलेक्ट्रिक वाहन चलाने की भी योजना है। इस पर काम चल रहा है।

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