बकरा पालन के बढते व्यवसाय के मददेनजर क्षेत्र में इस बार मक्का की काफी खपत हुई है। बकरा पालकों को बकरों में पनपने वाली बीमारियां भी उनके लिए चिन्ता का विषय रहती हैं। बकरा पालकों के अनुसार दस फीसदी बकरे बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं। पशु चिकित्सक बताते हैं कि बकरों में सर्दियों में निमोनिया हो जाता है। इसके अलावा बकरों में डायरिया होता है, जिनका ईलाज तो आसानी से उपलब्ध हो जाता है। परन्तु बकरों में चैत्र एवं बैशाख में फडका रोग होता है। जिसके लिए पूर्व में ही टीकाकरण कराना चाहिए एवं इस रोग से सुरक्षित रखने के लिए बचाव के तरीके अपनाने चहिए।
मेवात क्षेत्र में दो नस्ल के बकरे पालने में रूचि ली जाती है। इसमें देशी नस्ल तथा तोतापुरी दोनों ही नस्लों के बकरे बालाहेडी और जोधुपर से मंगाए जाते है। आमतौर पर बकरा पालक दो-तीन माह के बच्चें को खरीदने में दिलचस्पी लेता है। जो 4 से 5 हजार में मिलता है। बकरा पालक महेश कुमार, ओमप्रकाश तथा शम्मी का कहना है कि शिशु को हष्ट-पुष्ट बनाने के लिए जौ, मक्का, ज्वार, पीपल व झीडा की लोंग, तिल का तेल और हरे चारे की खुराक खिलाई जाती है। खासतौर पर मक्का की खुराक तेजी के साथ बकरा को मोटा ताजा बना देती है और 14 माह की आयु का बकरा ईंद के मौके पर कुर्बानी के लिए तैयार हो जाता है।